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* जैन गौरव-स्मृतियाँ
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स्वामी के. ज्येष्ठ भ्राता नन्दिवर्धन के साथ हुआ था। सुज्येष्ठा और चेल्लणा तब तक कुमारी ही थीं। ...
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:इस विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि महाराजा चेटक ने सिन्धुसौवीर जैसे दुरवर्ती देश से सम्बन्ध स्थापित किया, मालव देश से सम्बन्ध स्थापित किया, अपने राज्य की पश्चिमी सीमा से संलग्न वत्सदेश के राजा शतानिक के साथ और दक्षिणी सीमा पर स्थित अंगदेश के दधिवाहन राजा के साथ सम्बन्ध स्थापित कर लिया था। यद्यपि बैशाली गणराज्य और मगध की सीमाएँ मिलती थीं तो भी मगध के साथ चेटक ने पहले कोई सम्बन्ध नहीं रक्खा । तत्कालीन मगधसम्रादः श्रेणिक ने मुख्येष्टा के रूप और यौवन की ख्याति से आकृष्ट होकर उससे विवाह के लिये राजा. चेटक के पास प्रस्ताव भेजा, परन्तु चेटक ने उसे अस्वीकृत कर दिया । कालान्तर में श्रेणिक ने अपने दूतों के द्वारा सुज्येष्ठा को अपनी और आकृष्ट किया और उसकी सम्मति से सुरंग के द्वारा उसके हरण की योजना तैयार की परन्तु, भाग्यवशात् वह सुज्येष्ठा की छोटी बहन चेल्लणा को ही ले जा सका । सुज्येष्ठा वहीं पीछे रह । गई । इस घटना से सुज्येष्ठा को वैराग्य उत्पन्न हो गया और उसने दीक्षा . धारण कर ली १ । मगध-सम्राट श्रेणिक पहले बौद्ध धर्मावलम्बी था परन्तु चेल्लणा. ने उसे जैनधर्म.. का महत्व हृदयंगम कराना आरम्भ किया और . . फलस्वरूप श्रोणिक ने जैनधर्म अंगीकार कर लिया था । चेटक जैसे महाश्रावक की सुपुत्री होने से चेल्लणा में जैनधर्म के प्रति अगाध श्रद्धा थी इसीलिये वह श्रोणिक को भी जैन धर्मानुयायी और भगवान महावीर का परमभक्त बनाने में समर्थ हो सकी। इसप्रकार महाराजा चेटक और उनके संच जामाता नृपतिगण भगवान महावीर के उपासक थे। .... . ... महाराजा श्रेणिक के पश्चात् चेल्लणा से उत्पन्न पुत्र कोणिक मगध का सम्राट हुआ। कोणिक के छोटे भाई हल्ल और वेहल्ल को महाराजा श्रोणिक ने अपने जीवन काल में सेयणग हाथी और अहारसर्वक हार दिया था। कोणिक की पत्नी पद्मावति ने इन्हें प्राप्त करने की इच्छा व्यक की । कोणिक ने अपने भाइयों से हार और हाथी की मांग की। हल्ल, वेहल्ल ने उत्तर दिया कि
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. . . . १ त्रिष्टि शलाका पुरुष चरित्र में इसका वर्णन है। :: :...