SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ See जैन गौरव स्मृतियाँ ASES बौद्ध साहित्य के अनुसार वजीसंघ लिच्छवियों का ही गणतंत्र था। यह जोति बुद्ध के समय एक अत्यन्त शक्तिशाली जाति थी और इसकी राजधानी वैशाली थी। परन्तु जैन आगम "निरया वलियाओ" के अनुसार यह गणतन्त्र केवल लिच्छवियों का ही नहीं था अपितु मल्लों और लिच्छवियों का सम्मिलित संगठन था । वज्जियन गणराज्य के अतिरिक्त भी शाक्य, कोल्यि. मोरीय इत्यादि अनेक गणराज्य थे परन्तु उन सबमें वृजिराष्ट्रसंघ मुख्य था। इस वज्जियन गणराज्य के अध्यक्ष वैशालीनरेश चेटक थे। शासन कार्य सञ्चालन के नौ लिए लिच्छवि गणराजा मल्ली और नौ राजा चेटक के साथ रहते थे। . . तत्कालीन राज्यों में वैशाली का यह गणराज्य अत्यन्त सम्पन्न और शक्तिशाली था। इसका श्रेय इस संघ के सुयोग्य अध्यक्ष महाराजा चेटक को है। राजा चेटक अपने शौर्य के लिए विख्यात थे। उनके महाराजा चेटक-गण व्यक्तित्व और कर्तृत्व का महत्व इसी से आँका जा राज्य के प्रमुख के 'सकता है कि वे एक विशाल गणराज्य के प्रमुख थे। __ रूप में इनकी अध्यक्षता में वैशाली के इस गणराज्य ने इतनी शक्ति और समृद्धि प्राप्त करली थी कि उसकी प्रशंसा बुद्ध को भी अपने मुख से करनी पड़ी थी। ये महाराजा चेटक, भगवान महावीर के व्रतधारी श्रावक थे। भगवान् महावीर के इस महान् उपासक ने अपनी व्रतमर्यादा का निर्वाह करते हुए एक विशाल गणराज्य का बड़ी कुशलता के साथ नेतृत्व किया । - महाराजा चेटक के परिवार के सम्बन्ध में जो विवरण मिलता है. उससे विभिन्न राज्यों और राजाओं के पारस्परिक सम्बन्ध, नीति और सामाजिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है । आवश्यक चूर्णिमें उनके सम्बन्ध में कहा गया है कि "वैशाली नगरी में हैहय वंश में राजा चेटक का जन्म हा था। भिन्न २ रानियों से इनके सात पुत्रियाँ हुई जिनके नाम इस प्रकार थे।---.१ प्रभावती, २ पद्मावती, ३ मृगावती, ४ शिवा, ५ : ज्येष्ठा ६ सत्येका और चेल्ला। प्रभावती का विवाह वीतभय के ( सिन्धु सौवीर के राजा उदायन के साथ, पद्मावती का चम्पा के राजा दधिवाहन के साथ, मृगावतीका कौशाम्बी के शतानिक के साथ, शिवा का उज्जयिनी के राजा चण्डप्रयोत फे साथ और ज्येष्ठा का कुण्डग्राम के सिद्धार्थराजा के.पुत्र तथा व kolokekekok.kok: (३११) Kokakkhokooto -
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy