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जैन गौरव-स्मृतियां
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कर सकता है । जिसप्रकार. सिक्के की दोनों बाजुओं का महत्त्व समान है. इसीतरह नर और नारी का सामाजिक महत्त्व भी समान है।
... मानवता की अमरवेल. (: बालक-बालिकाएँ) नारियों के द्वारा:-. सिञ्चित-पालित होकर फलती-फूलती है इसलिए, नारियों का सामाजिक . महत्त्व पुरुषों की अपेक्षा भी अधिक आँका जा सकता है । भगवान ऋषभः देव ने कर्मयुग के आदिकाल में ब्राह्मी-सुन्दरी नामक अपनी पुत्रियों को सर्वप्रथम शिक्षण दिया। इस बात पर गहराई से. विचार करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि भगवान ऋषभदेव ने नारियों का सामाजिक महत्त्व विशेष संमझा था। वस्तुतः समाज-व्यवस्था में नारी काः महत्त्वपूर्ण स्थान होना चाहिए। क्योंकि नारियों की गोदी में पलकर ही समाज, देश और संसार का संचालन करने वाले नर-वीर तथ्यार होते हैं। नारियाँ ही शक्ति की प्रतिमा हैं । इनके द्वारा ही, समाज, राष्ट्र और विश्व को शक्ति प्राप्त होती :: है। राष्ट्र और विश्व के नायकों को तय्यार करने वालः माताएँ ही तो हैं। इतिहास और समाजशास्त्र इस बात का साक्षी है कि संसार में जितने : भी.महापुरुष हुए हैं उन्हें बचपन में अपनी माता के द्वारा विशिष्ट प्रकार के संस्कार प्राप्त हुए जो उन्हें महापुरुष, वनाने वाले सिद्ध हुए। इस दृष्टि से नारियाँ शक्ति की सरिताएँ हैं । इसलिए उनका सामाजिकमहत्त्व पुरुषों की . अपेक्षा भी विशेष गुरुतर है । एक अंग्रेजी विद्वान में नारी के महत्व को . इन शब्दों में व्यक्त किया है:-
... : The one that shäke: the cradle füles ihe world अर्थात् जो पालना झुलाती है वह दुनिया पर शासन करती हैं। सचमुच . यह वाक्य लिखने वाला समाजशास्त्र का पारंगत विद्वान् रहा होगा । नारा । की महत्ता के सम्बन्ध में एक लेखक ने लिखा है...... .:::. :..
... "नारी आदिशक्ति है, जनसृष्टि की जननी है और संसार पालन . करने वाली अन्नपूर्णा हैं । नारी काली-महाकाली है साथ ही वह कल्याणी
और वरदानी है। नारी की कोमलता में कठोरता और कठोरता में कोमलता छिपी है। नारी दुनिया के भीषण मरुस्थल में कलकल निनाद करती हुई, शीतल सुधामय जल प्रवाहित करती हुई. परमपावनी सरिता है । वह सृष्टिं के उपवन.की सर्वोत्तम सुगन्धित कलिका है। नारी तीर्थङ्करों की जननी, Skokokkokokok: : (२६८):kokhkokakkakke
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