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* जैन-गौरव-स्मृतियाँ
पैगम्बरों की प्रसविनी और अवतारों की माता है । नारी जगज्जननी और जगदम्बा है । वह लक्ष्मी है, सरस्वती है, सिद्धि है और सर्वशक्तियों की निधि है । इस.भीषण और कठोर संसार में प्रेम, वात्सल्य, क्षमा, सहनशीलता आदि सुकुमारभावों को प्रकट करने वाली नारी ही हैं । नारी की प्रतिष्ठा में . संसार की प्रतिष्ठा है।" ... ... ... ... .. . ..
... भारत के अतीत स्वर्णमय युग में नारी की अतिशय प्रतिष्ठा थी। . उस समय 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता' के सिद्धान्त का पालन - किया जाता था। वस्तुतः जहाँ नारी की पूजा-प्रतिष्ठा है वहाँ देवता-दिव्य . शक्तिसम्पन्न पुरुषों का निवास होता है। प्राचीन भारत में नारी की प्रतिष्ठा अक्षुण्ण थी इसीलिए उस समय का भारत उन्नति की पराकाष्ठा पर पहुंचा हुआ था। रोम का इतिहास भी यह बताता है कि जब तक वहाँ नारियों का सन्मान रहा वहाँ तक वह गौरव के साथ मस्तक ऊँचा रख सका परन्तु, . ज्योंही वहाँ नारी की अवगणना होने लगी त्योंही उसके पतन का प्रारम्भ भी होने लगा ।... ... . ......... .
प्राचीन भारत में नारी जाति को जितना सन्मान था, मध्ययुग में : उसका उतना ही अधिक अपमान हुआ। पुरुषों ने स्त्री को दासी, भोग्या और .. सेविका मान कर उस पर कड़ा पहरा लगा दिया । धीरे २ समाज में नारी .. की कोई आवाज न रही और सारी सत्ता पुरुपों ने हथिया ली। पुरुषों ने . अपनी सुविधा के अनुसार सामाजिक नियमों की रचना करली और नारी जातिःको गाढ बन्धन में बाँध दी । मध्ययुग में नारी की भरपेट निन्दा की. गई। उसे अबला, माया की मूर्ति, अविश्वसनीया, चंचला और न जाने ।' क्या कह दिया गया और उसे विकास के संब साधनों से वंचित कर दियागया।" उसकी शिक्षा भी स्त्री शद्रौनाधीयेताम्' कह कर रोक दी गई। परिणाम यह आया : कि स्त्री सचमुच अवला, मूर्ख और परतंत्र वन गई। पुरुषों के इस प्रकार के विधान का परिणाम यह हुआ कि वे स्वयं निर्वल हो गये । नारी को अवला बनाकर :: वे स्वयं निर्वल बन गये । नारी को चारदीवारी में कैद कर वे स्वयं गुलामी में कैद हो गये । नारी को अपना खिलौना बनाने से वे दूसरे के खिलौने बन गये । नारी के पतन का समय भारत के पतन का काल सिद्ध हुआ। इस