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*जैन-गौरव-स्मृतियां S
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__ अर्थात्-प्रत्यक्ष में जो कुछ महत्व दिखाई देता है वह तप-गुण-का है। जाति की कोई विशेषता नहीं है । चाण्डाल कुल में उत्पन्न होने पर भी हरिकेशी मुनि को कितनी उच्चसमृद्धि की प्राप्ति हुई। तप और त्याग के कारण हरिकेशी मुनि को जो महत्व मिला वह महत्व क्या जाति मात्र से ब्राह्मण होने वाले को मिल सकता है .? कदापि नहीं। . : . ..
हरिकेशी जैसे तपस्वी आध्यात्मिक चाण्डाल कुलोत्पन्न मुनि को जात्य. भिमानी और छूआ-छूत में लीन हुए ब्राह्मणों के धर्म वाटों में भेज कर जैन परम्परा ने गांधीजी द्वारा समर्थित मन्दिरों में हरिजनों के प्रवेश के मूलबीज का सूत्रपात किया है । सम्भवतः गांधीजी को हरिजनों के मन्दिर प्रवेश की योजना के लिये जैन परम्परा के इस उदाहरण से प्रेरणा मिली हो । कुछ . भी हो, जैनधर्म ने हजारों वर्ष पहले ही आध्यात्मिक और सामाजिक समस्याओं का वह सुन्दर समाधान किया है जिसका कुछ अंश लेकर आज के युग के सर्वोत्तम महापुरुष माने जाने वाले व्यक्ति में संसार को आश्चर्यान्वित ... कर दिया है।
. सिद्धान्ततः जैनधर्म जातिवाद का कट्टर विरोधी रहा है परन्तु ब्राह्मणों । के निकट एवं दीर्घकालीन सम्पर्क के कारण कालान्तर में जैनधर्मानुयायियों पर भी जातिवाद का प्रभाव पड़े बिना न रह सका। एक तरफ जैनसम्प्रदाय ने ब्राह्मणसम्प्रदाय पर वर्ण-वन्धन को शिथिल करने वाला प्रभाव डाला और दूसरी ओर ब्राह्मणसम्प्रदाय ने जैनसम्प्रदाय पर किसी · अंश तक वर्ण-बन्धन स्वीकार करने का प्रभाव डाला। इस तरह भारत के आँगन में अति प्राचीनकाल से अविच्छिन्न रूप से बहने वाली दो विचार-धाराओं का परस्पर में प्रभावित होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है । अतः आज के जैनधर्मानुयायी वर्ग में जातपात और छूआछूत की भावना दिखाई दे रही है वह उसकी मौलिक नहीं अपितु ब्राह्मणों के जातिवाद के दृढाग्रह की छाप मात्र है।
'. जैन बन्धुओं को यह समय लेना चाहिए कि छूआछूत का झगड़ा उनका अपना नहीं हैं परन्तु यह तो उनके पड़ोसी वेदधर्मानुयायियों के घर का है। उनके सम्पर्क के कारण और अपनी कमजोरी के कारण यह अपने