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जैन गौरव-स्मृतियां
दे रहे हैं, वे हमारे शास्त्रों में वर्णित है । किसी भी अन्यमत के तत्त्वज्ञान के ग्रन्थों में गति-स्थिति-माध्यम (धर्म-अधर्म) का वर्णन नहीं है । काल द्रव्यं की स्वतंत्र सत्ता भी जैनधर्म की एक विशेष महत्ता प्रदर्शित कर रही है। वास्तव में जैन जगत् का पद्रव्य विवेचन पूर्णरूप से संगत एवं वैज्ञानिक है, यह पूर्ण आभास उपयुक्त विवेचन से मिलता है । . जैन विचार पद्धति की मौलिकता-स्याद्वाद
जैनदर्शन की विचार-पद्धति सर्वथा मौलिक है , दार्शनिक जगत् में इस मौलिक विचार-धारा ने एक नवीन दिशा का सूचन किया है। जैनदर्शन की इस मौलिक तत्त्वचिन्तन प्रणाली ने तत्त्वनिर्णय के लिये एक नवीन दृष्टि का सूत्रपात किया है। दार्शनिक जगत् के लिये जैनधर्म की यह देन अनुपम और अद्वितीय है। . . . .
. स्याद्वाद, जैन तत्त्वज्ञान के भव्यभवन की सुदृढ़ पीठिका है । इस दृढ़ , आधार पर ही जैनतत्त्वों का निरूपण किया गया है । स्याद्वाद के सुसंगत सिद्धान्त के द्वारा विविधता में एकता और एकता में विविधता का दर्शन करा . कर जैनधर्म ने विश्व को नवीन दृष्टि प्रदान की है।
.. .. : त्याद्वाद का सिद्धान्तः एक वैज्ञानिक सत्य है। आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि पदार्थ में ऐसे अनेक गुण हैं जिनका.मानव जगत को पूरा ज्ञान नहीं है। हम पदार्थों को जिस रूप में देखते हैं वही उनका पूरा स्वरूप नहीं होता वरन् उसमें अनेकों अप्रकट-गुण-शक्तियाँ विद्यमान हैं । विज्ञान का कार्य क्षेत्र यथाशक्ति इन वस्तुधर्मों का अन्वेपण करना है। द्वितीय विश्व. युद्ध में भंयकर क्रांति मचा देने वाला अणु-बस इसका उदाहरण हैं । युद्ध के पूर्णाहुति काल के पहले अणुबम एक अज्ञात तत्व था । वह इस युद्ध के अन्व समय में प्रकट हुआ । इससे यह सिद्ध हुआ कि दुनिया में पदार्थ तो उतने ही हैं परन्तु उनके अनेक अग्रकट गुण विज्ञान के आविष्कार और अन्वेषण
...... ... . ......*प्रो० सी. आर. जन क्री Cosmology तथा प्रो. पद्मराजव्या के एक लेख के
ग्राधार पर।