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>>> जैन गौरव- स्मृतियाँ
इस प्रकार हम देखते हैं कि जैनधर्म जिन कारणों से काल की सत्ता मानता है, वे ही कारण तथा वे ही कार्य जो हमारे आचार्यों ने काल के बताये हैं, आज का विज्ञान भी स्वीकार करता है, पर जैसा कि शुरू में ही कहा गया है कि वह इसे स्वतंत्र द्रव्य नहीं मानता ।.
-: उपसंहार
उपर्युक्त विवेचन के tences or realities ) को
हैं:
पुद्गल पदार्थ और शक्ति धर्म गतिमाध्यम
अधर्म स्थितिमाध्यम
अंकाश
काल
आत्मा
आधार पर जैनमत के हम इन वैज्ञानिक नामों से
षड्द्रव्यों (Subs ग्रहण कर सकते
Matter and EnergyEther. ( of spice )
क
Field ( of Grravitation ) and electromandtism
Space
Time
Soul
जीव
A
आधुनिक विज्ञान इनमें से स्वतंत्र द्रव्य तो सिर्फ पुद्गल और धर्म को ही स्वीकार करता है परन्तु शेष को स्वतंत्र माने जाने का वैज्ञानिक अनुभव करने लगे हैं। इन द्रव्यों की सत्ता -सिद्धि के लिए किये जाने वाले प्रयत्नों की असफलता के कारण हैं विज्ञान की भौतिकता और इन द्रव्यों की अमूर्तता | यंत्रादि के द्वारा अमूर्त द्रव्यों को न देखा ही जा सकता है और न मापा ही । इसलिए आत्मा आदि के अस्तित्व का पता अभी तक नही लग सका है
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P
यदि आज का विज्ञान: जैनसम्मत समस्त द्रव्यों को स्वीकार नहीं करता है तो इसका यह तात्पर्य नहीं कि यह सव महत्त्वहीन है । हमें विज्ञान: के संकुचित क्षेत्र ( भौतिकता ) पर भी तो अर्थात उसकी असमर्थता पर भी ध्यान देना चाहिए। वैज्ञानिक लोग आज जिन चीजों का अभाव अनुभव कर रहे हैं एवं जिनके अभाव में वे बहुत सी प्राकृतिक क्रियाओं का हल नहीं
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