________________
se* जैन-गौरव-स्मृतियां ASS
... , रूप, भी पदार्थ का सामान्य गुण है। रूप के पाँच प्रकारों के विषय में कुछ मतभेद है । विज्ञान सात रंग मानता है (: VIBGOR )जिसमें श्वेत
और काला नहीं है। श्वेत रूप सबका मिश्रण एवं कृष्ण रूप सब रूपों का का अभावं रूप है। परन्तु जैनधर्म कृष्ण, श्वेत सहित केवल पाँच रूप ही मानता है यदि हम विज्ञान के आधार को देखें - : Colour is a Sansatioù caused by the action of in res in. tbe part of ietija Rays of different culour affect the eye differently and it is due to this difference in the accular sensation ihat the virious colours are different a ted. It is.a mixture of three primary sensations (red blue and green ) in different properties { Inter physics). ::: .. तो स्पष्ट जैनमत का निरुपण उचित है। यह तो सभी जानते हैं कि जब कोई भी पदार्थ गर्म किया जाता है और उसका तापमान बढ़ाया जाता है तो सबसे पहले वह वस्तु तापविकीरण (५००,00) करती है । उस समय तक इसका रूप प्रकट नहीं होता इसलिए काला ही रहता । फिर रूप में परिवर्त्तन (लाल ७००, ००) पीला (१२००, 00) सफेद (१५००, 08) होता है यदि तापमान. इससे अधिक किया जावे तो अन्त में नीला रंग प्राप्त होगा। तात्पर्य यह है कि प्राकृतिक रूप में तो रूप पाँच ही हैं और वे ताप के ही परिवर्धितरूप हैं। अन्य तो इसके मिश्रण है, जैसे हरारंग, (सफेद लाल ). यहाँ रूप से रंगने वाले रंग ( Pigments') नहीं, अपितु, प्राकृतिक नेत्र सम्बन्धी रूप ही ग्राह्य हैं । इस प्रकार वस्तुंगुणों के विषय में तो विज्ञान पूर्णरूप से मेल खाता है। ... विज्ञान में भी, पुद्गल की तरह पदार्थ और शक्तियाँ विविध रूप में पाये जाते हैं, जैसे ताप, विद्युत, (बंध) प्रकाश आदि । इन विविध रूपों का जैसा. वर्णन जैनमत में है, विज्ञान. अभी उस कोटि तक नहीं पहुंचा है। शरीर, बचन, मन, आदि के लिए विज्ञान पदार्थ मानता ही है । श्वासोच्छ वास स्पष्ट ही भौतिक. है। ..
Tre take oxygen from air and exhale Carbondi .oxide.