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★ जैन गौरव-स्मृतियाँ ★
कडुआ ये पांच रस, और शीत, उष्ण, रूक्ष, स्निग्ध, गुरु, लघु, मृदु और कठोर ये आठ स्पर्श- इस प्रकार २० गुण पुदगल द्रव्य के है ? जगत के समस्त रूपी पदार्थ पुद्गल ही हैं । पुद्गल के दो भेद हैं- अणु और स्कन्ध | अणु, पदार्थों का सबसे सूक्ष्म तथा इन्द्रियातीत अंश है। उसकी उत्पत्ति केवल भेद से होती है। अणु ही सब रूपी पदार्थों का मूल है । अणुओं के मिलने और बिखरने से स्कन्ध बनते हैं । अणु और स्कन्धों से ही जगत् के समस्त पदार्थ बने हैं । तात्पर्य यह है कि जगत् अणुसमुदाय मात्र है।
पुद्गल विविध रूपों में प्रत्यक्ष होता है:- शब्द, बन्ध, सौम्य, स्थौल्य, संथान, भेद, तम, छाया, आतप और उद्योत पुद्गल की पर्याय हैं । पुद्गल द्रव्य का यह निरूपण पूर्ण वैज्ञानिक है। आज के विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि यह निरूपण बिल्कुल यथार्थ है। इसमें आधुनिक के विज्ञान के समस्तं तत्वं छिपे हुए | आज का विज्ञान परमाणु की जैन शास्त्र वर्णित शक्ति को पूर्ण रूप से तो नहीं जान सका है परन्तु परमाणु बम के रूप में परमाणु की जिस शक्ति का उसने परिचय कराया है वह भी आश्चर्य चकित करने वाला है । परमाणु शक्ति का वर्णन करते हुए जैन शास्त्रों में कहा गया है कि वह एक समय में ( समय के सूक्ष्मतम भाग में ) लोक के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जा सकता है । पुगल की पूरण और विगलन शक्ति के आधार पर ही आज के विवध वैज्ञानिक अन्वेषण हुए हैं और हो रहे हैं । रेडियो सक्रियता, विघटन के सिद्धान्त तथा बंधकता की परिभाषा स्पष्ट ही पदार्थों के उपर्युक्त पूरण और विगन स्वभाव को साधित करती है ।
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न्याय-वैशेषिक दर्शन शब्द को आकाश का गुण मानते हैं, वे शब्द को पौद्गलिक नहीं मानते हैं परन्तु हजारों वर्ष पहले जैन-विज्ञान इस बात का खण्डन कर चुका है और शब्द को पुद्गल की प्रर्याय मानता आ रहा है । आज के विज्ञान ने ग्रामोफोन, टेलिफोन, रेडियो आदि यंत्रों से शब्द को पकड़ कर उसकी पौद्गलिकता सिद्ध कर दी है । छाया तथा अन्धकार को भी न्याय दर्शन पौद्गलिक नहीं मानता, वह इन्हें तेज - प्रकाश का अभाव रूप ही मानता है । परन्तु जैन दर्शन उनकी मान्यता का युक्तियुक्त खण्डन करके.
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