________________
Stesses★ SEDEDE
★ जैन-गौरव -स्मातथा ★
होता है। इससे स्थिति सहायक अधन द्रव्य की सत्ता सिद्ध होती है । इस धर्म तत्त्व को अंग्रेजी ( ) में कहते हैं । ग्रीस के हेरेक्लिटस जैसे दार्शनिक इसके अस्तित्व को नहीं मानते थे परन्तु बाद में (-) के नाम से इसको प्रकारान्तर से स्वीकार किया गया ।
आकाश द्रव्य का लक्षण जीव और अजीव द्रव्यों को अवगाहस्थान देना है | जैसे दूध शक्कर को स्थान देता है या दीवार खूँटी को आश्रय देती है इसी तरह आकाश द्रव्य संसार की समस्त श्राकाशास्तिकाय वस्तुओं को आश्रय देने वाला है। आकाश द्रव्य अन्य सव द्रव्यों का आधार रूप है । वैसे तो सव द्रव्य अपने २ स्वरूप में प्रतिष्ठित हैं तदपि आकाश सबको आश्रय देने वाला है क्योंकि सव की स्थिति आकाश में ही है । यह आकाश द्रव्य मूर्त्त . नित्य, सवव्यापक और अनन्त प्रदेशी है । यही एक ऐसा तत्त्व है जो लोक अलोक में सर्वत्र व्याप्त है । धर्म, अधर्म, पुद्गल, काल और जीवद्रव्य तो लोकाकाश तक ही हैं, अलोक में आकाश के अतिरिक्त और किसी द्रव्य की सत्ता नही है । चतुर्दश रज्जु-प्रमाण लोकाकाश है, शेष सब अलोक है । यह महाशून्य रूप अलोक असीम और अनन्त है । इस अनन्त अलोक में यह लोक तो महासागर के एक बिन्दु के समान है ।
सब भारतीय दार्शनिकों ने तो आकाश द्रव्य की सत्ता को स्वीकार किया है परन्तु पाश्चात्य विचारक केन्ट और हेगल इसे मानसिक व्यापार कह कर उड़ा देते हैं, किन्तु रसेल जैसे आधुनिक दार्शनिकों ने इस आकाश (स्पेस) की तात्त्विकता स्वीकार की है। आकाश एक सत्य पदार्थ है यह बात आइन्स्टीन ने भी स्वीकार की है । अतः आकाश द्रव्य की तात्त्विकता सन्देहातीत और निश्चित है ।
यह रूपी द्रव्य है । इसका आकार माना गया है। इसमें वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श पाया जाता है। पुद्गल में पूरण और गलन धर्म है। पूर का अर्थ एक दूसरे से सम्मिश्रण करना और गलन का अर्थ विघटन करना है। मिलना और बिखरना पुदगल का स्वभाव है । कृष्ण, नील, पीतं, लाल और श्वेत ये पाँच वर्ण, सुगन्ध- दुर्गन्ध रूप दो गन्ध, खट्टा मीठा, तीखा, कषैला और XXXXXXXXXXX (२३)XXXXNNNNXXX
पुद्गलास्तिकाय