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★ जैन- गौरव-स्मृतियां ड
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उक्त पन्द्रह कर्मादान कहे गये हैं । इन्हें उपलक्षण समझना चाहिये । इनके समान महाआरम्भवाले व्यवसाय गृहस्थ के लिए वर्जनीय हैं । अल्प आरम्भ और अल्प परिग्रह को लक्ष्य में रखकर व्यवसाय करना चाहिए ।
मन की विविध प्रकार की वृत्तियां भी हिंसा को प्रेरणा देती रहती हैं । यह मानसिक हिंसा और विना उपयोग से होने वाली हिंसा गृहस्थ के लिये वर्जनीय है। प्राप्त भोगों की लालसा, प्राप्त भोगों को टिकाये रखने की चिन्ता, बुरे विचार, कुयुक्तियां आदि के ध्यान से निष्प्रयोजन हिंसा होती है । कुतूहल से गीत, नृत्य, नाटक - सिनेमा देखना, कामशास्त्र में आशक्ति रखना, द्यूत-मंद्य, आदि का सेवन करना, व पशुपक्षियों में परस्पर युद्ध कराना: शत्रु के पुत्र-स्त्री आदि से वैर लेना, निरर्थक कथा करना, अत्यधिक निद्रा लेना, धी-तेल आदि वर्तनों को खुला रखना इत्यादि प्रमाद के आचरण से भी हिंसा होती है । पापकर्म का उपदेश देना भी हिंसा है । हिंसक शस्त्रास्त्रों और उपकरणों को अन्य को देना भी हिंसा का कारण है । उक्त निष्प्रयोजन हिंसाओं का परित्याग करना चाहिए । यह अनर्थ दण्ड विरमण व्रत है । यह अहिंसा व्रतको पुष्टि प्रदान करने वाला गुरणव्रत है ।
अर्थदण्ड विरमण व्रत
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समता भाव के विकास और अभ्यास के लिए, लिये हुए व्रतों की स्मृति को ताजी रखने के लिए, अनात्मभाव पर आत्मभाव की विजय सिद्धि के लिए तथा आत्मचिन्तन के लिए प्रतिदिन ४८ मिनट तक एकान्त शान्त स्थान सामायिक व्रत में बैठकर सव प्रकारके पापमय व्यापारोंका परित्याग करना सामायिक व्रत है । ईश्वरोपासना और आत्मोपासना का यह उत्कृष्ट साधन है । आत्मा का साक्षाकार करने और उसकी अनुपम विभूति के दर्शन करने का यह चमत्कारिक प्रयोग है । यह वाह्य संसार के अशान्त वातावरण से दूर होकर अन्तर्जगत् के सुरम्य नन्दन वन में विहार करने का प्रवेश द्वार है । शान्ति की ज्वालाओं से जलते हुए जीवों को शान्ति प्रदान करने के लिए यह शीतल मन्दाकिनी है ।
सामायिक की महिमा अपार हैं । यह वह अनमोल रत्र है जिसकी कीमत नहीं हो सकती । सारी दुनियां की सम्पत्ति की एकत्रित राशि से भी
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