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गुरुः-सयंमी, पापसे विरक्त तथा नये पाप कमौके बंधका प्रत्याख्यान लेनेवाले साधु अथवा साध्वीको दिनमें या रातमें, एकाकी या साधु समूहमें कभी भी कुत्रा -- - तलाव के पानीको श्रोसके पानीको, बर्फ, कुहरा, पाला के पानी, अथवा हरियाली पर
पडे हुए जल · बिंदुओं को, वर्षाकि पानीको, सचित्त पानीसे सामान्य अथवा विशेष भीगे हुए शरीर अथवा वस्त्रको, जलबिन्दुओं से भरी हुई काया अथवा वस्त्रको रगडना न चाहिये, उनका स्पर्श न करना चाहिये, उनको छूंदना न चाहिये, दबाना न चाहिये, पछाडना न चाहिये, भाढना न चाहिये, सुकाना न चाहिये, तपाना न चाहिये अथवा दूसरोंके द्वारा रगडवाना, स्पर्श कराना, कुंदवाना, दववाना, पछुडवाना, झडवाना, सुकवाना अथवा तपवाना न चाहिये और यदि कोई उन्हें रगडता हो, स्पर्श करता हो, छंदता हो, दबाता हो, पछाडता हो, भाडता हो, सुकाता हो अथवा तपाता हो तो उसकी प्रशंसा न करनी चाहिये अथवा वह ठीक कर रहा है ऐसा नहीं मानना चाहिये ।
शिष्यः - हे पूज्य ! मैं जीवन पर्यन्त के लिये मनसे, वचनसे, और कायसे उक्त प्रकारकी क्रियाएं स्वयं न करूंगा, न दूसरों के द्वारा कभी कराऊंगा ही और न कभी किसीको वैसा करते देखकर अनुमोदन ही करूंगा । पूर्वकालमें तत्संबंधी मुझसे जो कुछ भी पाप हुआ हो उससे श्रव मैं निवृत्त होता हूं, अपनी आत्माकी साक्षी पूर्वक उस पापकी निंदा करता हूं आपके समक्ष मैं उसकी गर्हणा करता हूं और श्रवसे ऐसे पापकारी कर्मसे अपनी श्रात्माको सर्वथा लिप्त
करता हूं।
गुरुः-पापसे विरक्त तथा नये पापकर्मों के बंधका प्रत्याख्यान लेनेवाले संयमी साधु अथवा साध्वीको दिनमें या रातमें, एकान्तमें या . साधु-समूहमें, सोते जागते किसी भी अवस्थामें काष्ठकी अग्नि, कोयले