________________
२०
दशवकालिक सूत्र
उस ध्येयको निवाहने के लिये अपरिग्रह बुद्धि, भाहार शुद्धि, गृहत्य जीवन की आसक्तिले अपनी साधुता का संरक्षण, भोजन में परिमितता और रसातति का त्याग-प्रादि सभी कायिक संयम के नियम है। मित तरह मानसिक एवं वाचिक संयम आवश्यक है उसी तरह कायिक संयम की भी आवश्यक्ता है क्योंकि कायिक संयम ही मानसिक एवं वाचिक संयन की नींव है । उसको मजवत रखने में ही सधुता रूपी मंदिर को सुरक्षा है
और साधुजीवन जितना ही अधिक स्वावलंबी एवं निःस्वार्थी बनेगा उतना ही वह गृहस्थ जीवन के लिये उपकारक है।
ऐसा मैं कहता हूं:इस प्रकार 'दुल्लकाचार' संबंधी तीसरा अध्ययन समाप्त हुआ।