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क्षुल्लकाचार
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( लघु आचार)
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त्याग, व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकासमें जितना सहायक होता है उतना ही समाज, राष्ट्र और विश्वको भी प्रत्यक्ष किंवा परोक्ष रूपमें उपकारक होता है ।
जिस समाज में आदर्श त्याग की पूजा होती है वह समाज निःस्वार्थी, संतोषी एवं प्रशान्त अवश्य होगी। उसकी निःस्वार्थता राष्ट्रकी पीडित प्रजाको आश्वासन दे सकेगी और उसकी शांति के आंदोलन विश्वभरमें शांतिका प्रचार करेंगे ।
इसी कारण, जिस देशमें त्यागकी महत्ता है वहां सुख का सागर हिलोरे मारकर बहता है । उस सागर के शांत प्रवाहों में वैरियों के वैमनस्य लय हो जाते हैं और विरोधक शक्तियों के प्रचंड बल भी धीमे . २ शांत पड़ जाते हैं ।
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किन्तु जिस देश की प्रजामें भोगवासना का ही प्राधान्य है उस देशमें धन होने पर भी स्वार्थ, मदांधता, राष्ट्रद्रोह, इत्यादि शांतिके शत्रुओंका राज्य छाए बिना न रहेगा जिसका परिणाम आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, कभी न कभी उस राष्ट्रकी शांति के नाश के रूपमें परिणत हुए बिना न रहेगा। सारांश यह है कि आदर्श