________________
-
मिड नाम
[२] जो पृथ्वी को स्वयं नहीं खोदता, दूसरों से नहीं खुदवाता और
खोदनेवाले की अनुमोदना भी नहीं करता; जो स्वयं सचित्त पाणी नहीं पीता, न दूसरों को पिलाता है और पीनेवालों की अनुमोदना भी नहीं करता; जो तीक्ष्ण प्रस्न रूपी अग्निको स्वयं नहीं जलाता, न दूसरों से जलवाता है और जलानेवाले की अनुमोदनाभी नहीं करता, वही श्रादर्श भिन्नु है।
टिप्पणी-यहां किसी को यह शंका हो सकती है कि ऐसा क्यों कहा है ? उसका समाधान यह है कि जैन दर्शनमें आध्यात्मिक विकासकी दो श्रेणियां बताई हैं (१) गृहस्थ. संयम मार्ग, और (२) साधु संयम मार्ग । गृहस्थ संयमो को गृहस्थाश्रममें रहते हुए भी संयमकापालन करना होता है किन्तु उसके अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और त्याग प्रमाणमें मर्यादित होते हैं और वे 'अणुव्रत' कहलाते हैं। किन्तु त्यागी को तो उक्त पांचों व्रतों को पूर्ण रीति से पालना पडता है इसलिये उसके व्रतों को 'महानत' करते हैं।
उपरको गाथा में त्यागी के त्याग का प्रकार बताया है। पृथ्वी, जल, 'अग्नि, वायु तथा वनस्पति ये सप सजीव है यद्यपि उनके जीव इतने सूक्ष्म होते है कि वे हमारी चर्मचक्षुओं द्वारा दिखाई नहीं देते। किंतु वे ' है 'अवश्य । उनकी संपूर्ण अहिंसा गृहस्थ जीवन में साध्य (संभव) नहीं है इसीलिये गृहस्थ संयममार्ग में स्थूल मर्यादा का विधान किया गया है। त्यागी जीवन में ऐसी अहिंसा सहज साध्य है इसलिये . उसके लिये ऐसी सूक्ष्म हिंसा को भी त्याज्य बताया है। [३] जो पंखा आदि साधनों से स्वयं हवा नहीं करता और दूसरों
से नही कराता; बनस्पति को स्वयं नही तोडता और न दूसरों से तुडवाता ही है मार्गमें सचित बीज पडे हों तो जो