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विनयसमाधि
[२२] अविनीत के सभी सद्गुण नष्ट हो जाते हैं और विनीत को
सद्गुणोंकी प्राप्ति होती है ये दो बातें जिस मनुप्यने जाम ली
वही सच्चा ज्ञान प्राप्त करनेका अधिकारी है। [२३] जो साधक संयमी बनकर भी बहु क्रोधी, अपने स्वार्थ एवं
सुखका आतुर, चुगलखोर, तावेदार, अधर्मी, अविनयी, मूर्ख, पेट, केवल नाम मात्रका साधु होता है वह मोतका कभी भी
अधिकारी नहीं हो सकता। [२४] किन्तु जो गुरुजनों के आज्ञाधीन, धर्म तथा ज्ञानके असली रहस्य
के जानकार और विनयपालन में पंडित होते हैं वे इस दुस्तर संसारसागरको सरलतासे पारकर-समस्त कर्मोंका क्षय करके अन्तमें मोक्ष गतिको प्राप्त होते हैं, प्राप्त होंगे और प्राप्त हुए हैं।
टिप्पणी-क्रोध, स्वच्छंद, माया, शठता, और मदांधता ये पांच दुर्गुण विनयके कट्टर शत्रु है। इनको त्याग कर तथा उपर्युक्त सद्गुणोंकी आराधना कर साधक भवसागरके प्रवाहमें न वहते हुए अपनी ली हुई प्रतिशा पर इद रहे।
ऐसा मैं कहता हूं:इस प्रकार ‘विनय समाधि' नामक अध्ययनका दूसरा उद्देशक समाप्त हुआ।
तीसरा उद्देशक
जो पूज्यता सद्गुणों के बिना ही प्राप्त हो जाती है उससे अपना और दूसरों दोनोंका ही अनिष्ट होता है। उससे उन दोनोंका विकास रुक जता है और अन्तमें दोनोंको पश्चात्ताप करना पडता है। .
ऐसी पूज्यताका प्रभाव वहीं तक रहता है जहां तक कि प्रजा.