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दशवकालिक सूत्र
इल वाक्यशुद्धि की
इस वाक्यशुद्धि की जितनी आवश्यकता मुनिको है उतनी ही नहीं किन्तु उससे भी बहुत अधिक जरूरत गृहस्थ साधकों को है क्योंकि वाणीकी शुद्धि पर ही क्रियाशुद्धिका बहुत बडा आधार है इतना ही नहीं किंतु क्रोधादि षड्डिपुओं को वशीभूत करने के लिये भी मृदु, स्वल्प, सत्य तथा स्पष्ट वाणी की जरूरत है।
ऐसा मैं कहता हूं:इस प्रकार 'सुवाक्यशुद्धि' नामक सातवां अध्ययन समाप्त हुआ।