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सुवाक्यशुद्धि
मूर्ख ! हे लंपट ! हे दुराचारी ! आदि कर्कश, संवोधनों का
प्रयोग साधु न करे। [२०] परन्तु दूसरे की योग्यतानुसार उसका नाम लेकर अथवा उसके
गोत्रानुसार नामका संबोधन करके आवश्यकतानुसार एकवार
या अनेकवार बोले। [२१] इस तरह मनुष्यों के सिवाय इतर पंचेंद्रिय प्राणियों में से
जब तक उसके नर या मादा होने का निश्चय न हो तव तक वह पशु अमुक जातिका है, वस इतना ही कहे किन्तु यह नर
है या मादा ऐसा कुछ भी न बोले । [२२४२३] इसी तरह मनुष्य, पशु, पती.या सांप (रेंगनेवाले कीट
कादि) को यह मोटा है, इसके शरीरमें मांस बहुत है इस लिये वध करने योग्य है अथवा पकाने योग्य है श्रादि प्रकार के पापी वचन साधु न बोले। किन्तु यदि उसके संबंधमे बोलना ही पड़े तो यदि वह वृद्ध हो तो उसे वृद्ध अथवा जैसा हो वैसा सुन्दर है, पुष्ट है, नीरोग है, प्रौढ शरीरका है प्रादि निर्दोप वचन ही बोले
(किन्तु सावद्य वचन न वोले।) [२४] इसी तरह बुद्धिमान मितु गायों को देखकर ये दुहने योग्य
हैं' तथा छोटे बछडों को देखकर 'ये नाथने योग्य हैं। अथवा घोडों को देखकर ये रथमें जोडने योग्य हैं इत्यादि प्रकार की
सावध भाषा न बोले। [२५] परन्तु यदि कदाचित् उनके विषयमें बोलना ही पडे तो भिन्तु यों
कहें कि यह बैल तरुण है, यह गाय दुधार है अथवा यह बैल छोटा या बडा है अथवा यह घोडा रथमें चल सकता है।