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सुवाक्यशुद्धि
-(0)(भाषा संबंधी विशुद्धि)
निस प्रकार साधक के लिये कायिक संयम अनिवार्य एवं आवश्यक है उसी प्रकार साधक के लिये वचनशुद्धि की मी पूर्ण आवश्यकता है।
वाणी अन्तःकरण के भावों को व्यक्त करनेका एक साधन है और इतनी ही इसकी उपयोगिता है । इसलिये निष्कारण वाणी के उपयोग को वाचामता अर्थात् वाणी का दुरुपयोग कहा है । यही कारण है कि विशेष कारण के विना सजन पुरुष बहुत कम बोलते हैं यहां तक कि वे बहुधा मौन से ही रहते हैं। __जो कोई भी वाणी का दुरुपयोग करता है वह अपनी शक्ति का दुर्व्यय करता है, इतना ही नहीं, उतनी ही उसकी वाणी की शक्ति भी नष्ट होती जाती है । इसका फल यह होता है कि सामने के आदमी पर अभीष्ट असर नहीं पडता, साथ ही साथ उसमें असत्य अथवा कठोरता आने का भी डर रहता है।
इसलिये वाणी कैसी और कहां वोलना उचित है यह विषय साधक के दृष्टिबिंदुसे अतीव उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है और इसका. वर्णन इस अध्ययन में विस्तार के साथ किया गया है ।