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दशवैकालिक, सूत्र होता है, और रात्रि में उनको श्राहार ग्रहण का सर्वथा त्याग करना होता है।
टिप्पणी-चार प्रहरों का एक भक्त होता है । 'एक भक्त ' शब्द का 'एकवार भोजन करना ' भी अर्थ हो सकता है किन्तु यहां उसका प्राशय रात्रि भोजन त्याग से ही है। [२४] (रात्रिभोजन के दोप बताते हैं:) धरती पर ऐसे त्रस एवं
सूक्ष्म स्थावर जीव सदैव व्याप्त रहते हैं जो रात्रिको अंधेरे में दिखाई नहीं देते तो उस समय आहार की शुद्ध गवेपणा किस प्रकार हो सकती है।
टिप्पणी-रात्रिको आहार करने से अनेक सूक्ष्म जीवों की हिंसा हो सकती है तथा भोजन के साथ २ जीव जन्तुओं के पेट में चले जाने से रोग हो जाने की संभावना है । तीसरा कारण यह भी है कि रात्रिभोजन करने के बाद तुरन्त हो सो जाने से उसका यथोचित पाचन भी नहीं होता । इस प्रकार रात्रिभोजन करने से शारीरिक एवं धार्मिक इन दोनों दृष्टियों से अनेक हानियां होती है । इसीलिये साधु के लिये रात्रिभोजन सर्वथा निषिद्ध कहा गया है ।' गृहस्थों को भी इसका त्याग करना योग्य है क्योंकि इन दोषों की उत्पत्ति में उसके पदस्थ के कारण कोई भिन्नता नही होती। [२५] और पानी से भीगी पृथ्वी हो, अथवा पृथ्वी पर वीज फैले
हों अथवा चींटी, कुंथु आदि बहुत से सूक्ष्म जीव मार्ग में हों इन सबको दिनमें तो देखकर इनकी हिंसा से बचा जा सकता है किन्तु रात्रि को कुछ भी दिखाई न देने से इनकी हिंसा से कैसे बचा जा सकता है ?.(इनकी हिंसा हो जाने
की पूर्ण संभावना है) [२६] इत्यादि प्रकार के अनेकानेक दोषों की संभावना जानकर ही
ज्ञातपुत्र भगवान महावीर ने फरमाया है कि निर्ग्रन्थ (संसार