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धर्मार्थकामाध्ययन
-(०)(मोक्ष के इच्छुकों का अध्ययन)
सद्धर्म के आचरण करने का फल मोक्षप्राप्ति है । अनन्त ज्ञानी पुरुषों का यही प्रत्यक्ष अनुभव है कि कर्मबंधन से सर्वथा मुक्त हुए विना किसी भी जीवात्मा को स्थिर, सत्य एवं अवाधित सुख प्राप्त नहीं हुआ, प्राप्त नहीं होता और प्राप्त होगा भी नहीं।
इसी लिये सुख के इच्छुक साधक मोक्षमार्ग के साधनभूत सद्धर्म की ही आराधना करना पसंद करते हैं। उस मोक्षमार्गमें सर्व 'प्रथम पसंदगी संपूर्ण त्याग की है। उसकी साधना करनेवाला वर्ग 'साधक' कहलाता है। त्यागी की त्यागरूपी इमारत ' के स्तंभ को ही आचार कहते हैं।
एक समय मोक्षमार्ग के प्रवल उपासक तथा जैनधर्म के उदार तत्वों को आत्मभूतकर शान्तिसागर में निमग्न रहनेवाले एक महा तपस्वी श्रमण अपने विशाल शिष्यसमुदाय सहित गांव के बाहर 'एकांत उद्यान में पधारे। उनके सत्संग का लाभ लेने के लिये अनेक ' जिज्ञासु उनके पास गये और उन परम त्यागी, शांत, दांत, तथा 'धीमान् गणिवर को अत्यन्त भावपूर्ण नमस्कार कर उनने त्याग के