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पिंडेपणा
[७३४७४] जिसमें बहुत से बीज हों ऐसे सीताफल आदि जैसे
फल, अनिमिप नामक वृक्ष के फल, बहुत से कांटों से युक्त अगथिया का फल, टींवरू का फल, चेल का फल, गन्ने के टुकडे (गडेरी), सामलीवेल का फल इत्यादि फल कदाचित अचित्त भी हो फिर भी उनमें खाने योग्य · भाग कम और फेंक देने का भाग अधिक होने से, ऐसे फलों के दाता को
मुनि कहे कि यह मिक्षा मेरे लिये ग्राह्य नहीं है। [५] (अव अग्राह्य पेय गिनाते हैं।) उच्च (द्राक्ष आदि उत्तम पदार्थ
का) या नीच (कांजी आदि का) पानी, गुड के वर्तन का धोवन, भाटे का पानी, चावल का धोवन, यदि ये तत्काल के तैयार किये हुए हों तो भिनु उस पानी (पेय) का . त्याग कर दे।
टिप्पणी-एक अन्तर्मुहूर्त अर्थात् दो घडी या ४८ मिनिट तक पानी में किसी भी वस्तु के डालने पर भी वह सचित्त ही बना रहता है इस लिये इतना समय निकलजाने के बाद ही वह जल मितु के लिये ग्राह्य होता है। [७६] किन्तु यदि उस पानी को बने हुए बहुत देर होगई हो
(परिणत काल बीत गया हो) तो उस पानी को अपनी बुद्धि से, दृष्टि से अथवा गृहस्थ से पंछकर अथवा उससे सुनकर यदि वह पानी शंका रहित हो तो भिन्नु उसको ग्रहण करे।
टिप्पणी-धोवन और परिपक्क पानी का रंग बदल जाता है उस पर से जान लेना चाहिये कि यह जल ग्राह्य है या नहीं। । [७७] अथवा विरुद्ध प्रकृति का शस्त्र परिणमित होने (लगने) ले __. अचित्त बने हुए पानी को संयमी ग्रहण कर सकता है। किन्तु