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________________ अपूर्व रसवृत्ति जागृत विभाग है और न है बलात् आकृष्ट कर लेते हैं और उस में एक कर देती है । दशवैकालिक में न तो ऐसे प्रथम ऐसे रोचक संवाद ही, फिर भी दशवैकालिक में एक ऐसा आकर्षक तत्त्व तो अवश्य है कि जिसकी तरफ जिज्ञासु वाचक आकृट हुए बिना नहीं रह सकते । आज भारतवर्ष में जितने अंश में आर्थिक समस्या की गुत्थी : उलझी हुई है उतनी ही चारित्र विषयक दुस्यो भी उलझी हुई है क्योंकि आर्थिक निर्बलता का मूल कारण यही है इस बात को आज कोई भी स्वीकार नहीं कर सकता | आधुनिक युग में जितना मनुष्य वांचता या विचारता है, यदि उसका शतांश भी आचरणपरिणीत करे तो यह उसके लिये विशेष आवश्यक एवं उपयोगी होगा । यह आवश्यक तत्त्व दशवैकालिक में से मिन सकता है क्योंकि इसमें संयमी - जीवन के कठिन नियमों के साथ २ उनके पालन की प्रेरणा भी मिलती है । इस अपेक्षा से जिज्ञासु वर्ग में जितना आदर उत्तराध्ययन का हुआ है उतना ही आदर दशवैकालिक को भी मिल जायगा यह आशा अनुचित नहीं है । पद्धति उत्तराध्ययन के अनुवाद में जो २ बात उन्हीं को दशवैकालिक के अनुवाद में भी मात्र अन्तर इतना ही है कि उत्तराध्ययन की संपादकीय 'टप्पणियां कुछ अधिक हैं और होत तो संभव है कि मूल गाथा के प्राशय के स्पष्टीकरण में कठिनता यदि ऐसा न किया गया ( ६ ) ध्यान में रखी गई थीं ध्यान में रखा गया है । अपेक्षा दशवैकालिक में
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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