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________________ ८५७ मद्रास प्रान्त । मूर्तियोंपर डाला जाताहै और पीछे पवित्र समझकर लोग पीते हैं और तंजोर पूर्व समयमें विद्याका घर रहा है । यहांपुर रेशमीगलीचे, मलमल, सूतीकपड़े, जेवर, तांवे पीतलकी चीजें बहुत अच्छी बनती हैं। पुण्डी। जिला उत्तर अर्काटमें 'अर्नी' स्टेशनसे (S. J. R.) करीव ३ मील है । रास्ता खराव है । ग्राममें नाममात्र ३ घर हैं। जिनमें एक वढियार पुजारीका घर है । शिखरवन्द मन्दिर प्राचीन बहुत विशाल, पत्थरका बना हुआ है। सबसे बाहरी मन्दिरके चारों ओर एक वडा पत्थरका आकार है । इस वृहत् मन्दिरके भीतर जानेसे १६ खम्भीका एक दहलान मनोज्ञ शिल्पकला संयुक्त है, इसके सामने दो और दहलान हैं, जिसके मध्यमें वेदीपर श्रीपार्श्वनाथस्वामी २३ वें तीर्थकरकी प्रतिमा करीब ५ फुट ऊंची कायोत्सर्ग अतिमनोग्य विराजमान है । सोलह खम्भोंके दहलानके सामने आकारके मध्यमें शिखरबंद मन्दिर ३ हैं जिनकी बाहरी वाजू चित्रकलासे सुशोभित है । एक मन्दिरमें ब्रह्मा और यक्षकी मूर्ति, दूसरेमें श्रीकुष्माण्ड देवी ( यक्षी) की मूर्ति विराजमान है। इस मन्दिरके बीचोंबीच पश्चिमी दीवारपर ७-८ लकीरका और दक्षिण दीवारपर २-३ डोरीका शिलालेख पाया जाता है । अस्पष्ट होनेके कारण पढ़ा नहीं जाता है। और इसके वगलमें तीसरे मन्दिरमें अतिमनोग्य परम दिगम्बर श्रीऋषभदेवकी मूर्ति वेदीपर विराजमान है। इन मन्दिरोंकी एक कथा ताड़पत्रपर तामील लिपीमें लिखी हुई पुजारीके पास है । उस कथाका सारांश यह है: प्राचीन कालमें 'पण्डाईवेडू' नगरके राजाके राज्य-प्रवन्धमें यहांपर बड़ाजंगल था उसमें दो शिकारियोंको जमीनके अन्दर कुछ कंदमुलके लिये खोदे हुये खड्डेमें यह श्रीऋपभदेवकी प्रतिमा प्राप्त हुई । और वे शिकारी अपना भाग्योदय जानकर उसका पूजन करने लगे । तत्पश्चात् वहां जंगलमें घूमते घूमते एक दिगम्बर जैन मुनि आये । शिकारि- . योंने उनका आदरसत्कार करके मुनिमहाराजकी यथाविधि पूजन की, और प्राप्त हुई प्रतिमा बताई, प्रतिमाको देखकर मुनिजी अति आनंदित हुए, और मन्दिर और प्रतिष्ठा होनेके वाद भोजन करनेकी प्रतिज्ञा की, पर त्यागी होनेके कारण उनके पास धन नहीं था तव मुनिमहाराज चिंतामें पड़े । कुछ दिन बीतनेके वाद मुनिमहाराजको, स्वप्न हुआ कि यहाँके प्रबन्धकर्ता पण्डाईवेडू' नगरके राजाकी कन्याको किसी एक बदमाश भूतकी बाधा हुई है और वह हमेशा नंगी रहती है, और जव नौकर चौकर उसको कपड़े पहिनाते हैं तब ये उनको मारने लगती है। राजाने भूतको भगानेके लिये बहुत प्रयत्न किए, परन्तु सव निष्फल हुए, इस लिये आप भूतको भगा दीजिये इसीसे कार्यसिद्धिं होजा
SR No.010495
Book TitleBharatvarshiya Jain Digambar Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurdas Bhagavandas Johari
PublisherThakurdas Bhagavandas Johari
Publication Year1914
Total Pages446
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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