________________
मद्रास प्रान्त |
८५१
दहलान और दीपस्तम्भ हैं । शिलालेखोंसे मालूम होता है कि, इसके पूजनप्रक्षाल आदि प्रबन्धके लिये कई राजाओंने पांच-सात ग्रामकी जमीन मुफत दी थी. परन्तु अव जमीन वगैरः कुछ नहीं है । करीब १२ वर्ष पूर्व में यहां 'अप्पास्वामी नैनार' बेल्लारीसे आकर रहने लगे थे और उन्होंने इस मंदिरका प्रवन्ध अपने हाथमें लिया था तवसे मन्दिरके पूजन प्रक्षाल आदिका प्रबन्ध योग्य रीतिसे अच्छा होने लगा है ।
कारकल ।
( अतिशय क्षेत्र )
कारकल दिगम्बर जैनियोंका अत्यंत प्राचीन तीर्थस्थान जिला दक्षिण कनैडामें सीमोगा (II. S. II. Ry ) स्टेशनके पास 'मूडवद्री' से दस मील है । यहां दिगम्बर जैनियोंके घर १० तथा मन्दिर १८ बहुत प्राचीन और मनोज्ञ बने हुए हैं । यहां पर्वतपर श्रीबाहुबलीस्वामीकी कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा करीब ३२ फीट ऊंची अति मनोज्ञ विराजमान है । इस पर्वत के सामने दूसरे पर्वतपरके मन्दिरमें चारों ओर तीन तीन प्रतिमाएँ खङ्गासन बहुत भारी २ स्थित हैं । एक मन्दिरके आगे ३० गज ऊंचा एक बहुतही मनोज्ञ मानस्तम्भ सुंदर कारीगरी युक्त विद्यमान है । इनके सिवाय यहां 'रानीकेरे' वा 'एलिफैन्ट' नामक तालाबके मध्यमें एक प्राचीन मन्दिर था जो कि 'चतुर्मुखवस्तीके' नामसे प्रसिद्ध था । जैनियोंकी शिथिलता करके व अब नहोने सम्भाल भलीप्रकारसे यह मन्दिर अत्यंत जीर्णावस्था में हो गया है । अगर यही हाल रहा तो चंद रोजमें नाम मात्र भी नहीं रहेगा । तालावके पासके एक प्राचीन शिलालेख से विदित होता है कि, इस मन्दिरको 'भैरव वोडिअर' नामक जैन राजाने बनवाया था । पर्वतपर और भी बहुत सी प्रतिमाएँ अत्यंत प्राचीन कारीगरीका स्मरण कराने वाली विराजमान हैं ।
यहां पर भी एक पट्ट बहुत कालसे स्थापित है । वर्तमानमें उसके अधिकारी भट्टारक 'ललितकीर्तिजी' पट्टाचार्य हैं। उनके पास करीव ५० धर्मशास्त्र के हैं। यात्रियोंको 'ठहरनेके लिये ग्राममें एक धर्मशाला बनी हुई है । वहां मेला माघ और फागुन शुक्ला १५ से ७ दिन तक भरता है । मेलेका और क्षेत्रका प्रबन्ध 'शंकर' पड़ियाल कारकल निवासीके अधीन है।
०