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________________ ८५० मद्रास प्रान्त । परन्तु बौद्धीक पहिले कांची देशमें जैनधर्मका बहुत ही अच्छा प्रचार था, यहां तक किजैन बैरागर्ने इस जिलेमें अब तक मौजूद हैं । कांची में बड़े बड़े विद्वान् और तपस्वी, ऋषि मुनि बिहार किया करते थे, उस समय तक यहां बौद्धधर्मका प्रवेश नहीं था, परन्तु अन्य प्रान्तोंमें बौद्धधर्मका खासा प्रचार हो रहा था। जब तक भगवान् 'अकलंकदेवने' अवतार लेकर जैनधर्मकी फिरसे विजय दुन्दुभी नहीं बजाई तबतक बौद्धधर्म वराबर रहा है। 'स्वामी समन्तभद्राचार्य कांचीनगरीकेही रहनेवाले थे। स्वामीजीने कांचीदेशमें विहार करके जैनधर्मका बड़ा भारी उद्योत किया था और वादकी भेरी बजाकर विजय प्राप्त की थी। कांची ७ वीं, ८ वीं, और ९ वीं सदीमें 'पल्लववंश' और 'चोलवंश के राजाओंकी राजधानी थी । १४ वीं सदीमें यह विजयनगरके हिन्दू राजाके अधिकारमें आ गई। और सोलहवीं सदीके आरम्भमें विजयानगरके 'राजा कृष्णराय' ने कांजीवरमके दो बड़े मन्दिरोंको बनवाया जो कि द्राविड़देशके सबसे बड़े मन्दिरोंमें से हैं । दक्षिणी 'भारतके कई बड़े मन्दिरोंको उन्होंने सुधरवाये । जब कि सन् १६४४ ई० में विजयनगरके राज्यकी घटती होने लगी तब गोलकुण्डाके मुसलमान बादशाहके हाथमें आगया। पीछे अर्काट राज्य एक हिस्सा बनगया और सन् १७५१ ई० में गवर्नर जनरल 'लार्ड क्लाइब' ने अर्काटसे लौटते समय फरासीसियोंसे कांजीवरमको छीन लिया । कांचीके रेल्वे स्टेशनसे डेड़ मील दूर शिवकांची है, और शिवकांचीसे २ मील दक्षिण पूर्व विष्णुकांची है । शिवकांचीमें शैवलोग और विष्णुकांचीमें रामानुज सम्पदायके बैष्णव रहते हैं। शिवकांचीमें शिवका बड़ा मन्दिर है, इस मन्दिरमें सुन्दर गोपुर बड़े बड़े मण्डप और का शिवलिंग हैं। . बिष्णुकांचीमें वरदराजविष्णुका विशाल मन्दिर पत्थरका बनाहुआ है, मन्दिरमें वरदराजविष्णुकी श्याम चतुर्भुज खडी मूत्ति बहुमूल्य भूषणोंकर सुशोभित है। और भी कई मूर्तियां है। इन मंदिरोंमें मूर्तियोंके आभूषण रत्नजडित लाखों रुपयोंके हैं । मंदिरके तालाब और घाट देखने योग्य हैं । मई महीनेमें यहां बड़ा भारी मेला भरता. है। कांजीवरमकी मनुष्यसंख्या ४३ हजार है इनमें दिगम्बर जैनियोंके आवादी २५ गृह व मनुष्यसंख्या ८० के करीब है । वर्तमानमें यहां जैनियोंका एक भी मंदिर नहीं है, लेकिन यहांके भाई दर्शनपूजनार्थ दो मीलपर 'तिरुपरिथीकुनरम' को जाते हैं । तिरुपथीकुनरुममें 'वेयावती' नदीके किनारे दो दिगम्बर जैनमन्दिर करीब दो हजार वर्षके प्राचीन हैं । इसमें बडा मन्दिर तो बहुत ही सुन्दर रमणीय और देखने योग्य है । इसमें कई प्राचीन शिलालेख खुदे हुए हैं । मंदिरके दोनों बाजुओंपर पांच गोपुर
SR No.010495
Book TitleBharatvarshiya Jain Digambar Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurdas Bhagavandas Johari
PublisherThakurdas Bhagavandas Johari
Publication Year1914
Total Pages446
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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