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मद्रास प्रान्त ।
८४९ कलीकोट नामक एक बड़ा कस्वा है। मद्रास रेल्वेकी दक्षिण पश्चिमकी शाखा कलीकोट तक गई है । कलीकोटका वर्तमान कस्बा १३ वीं सदीका है।
ऐसी कहावत है कि मालावारके मालिक 'चेरुमान पेरुमालने कलीकोट (जैमोरिन) को दे दिया। इसी हिन्द-राजाके समयमें सवसे पहिले यूरोपखंडके पोर्तगालदेशकी राजधानी लिस्बन शहरसे सन् १४९८ ई० की ११ मईको 'वास्कोडीगामा, कलीकोट' में आई थी । राजाने वास्कोडीगामाका स्वागत किया था । सन् १५१३ ई० में पोर्तगालवालोंने एक किला बनाया और सन् १६१६ ई० में अंग्रेजोंने अपनी कोठी काय. मकी वादमें 'फरासीसी' और 'डचोंकी' कोठिया बनीं । इन लोगोंमें आपसमें कई लड़ाइयां हुई जिनमें अंग्रेज विजयी हुये और सन् १७९२ ई० में कलिकोटका सम्पूर्ण देश अंग्रेजोंके अधिकारमें हो गया।
यहां देखने योग्य स्थान पोर्तगीजोंकी वस्ती, कलेक्टरकी कचहरी, कष्टम हौस, समुद्र - के किनारे यूरोपियन सराफोकी कोठियां, लाइटहौस (रोशनी घर) सर्कारी आफिस,
बहुतसी प्रसिद्ध इमारतें, पागलखाना, वंक, गिर्जाघर, फरासीसियोंका मकान, स्कूल, कलीकोटक राजाका महल (जिसमें वास्कोडी गामाका स्वागत हुआ था। इसमें २ स्तम्भ अवतक विद्यमान हैं) इत्यादि कई स्थान हैं।
मलंबारके जंगलाम सुशोभित वृक्षोंके जंगल सघन घट डटे हुये हैं, मलावारका फैला हुआ सुन्दर जंगल अत्यंत वेशकीमती है । इसमें चन्दनकी उत्तम लकड़ी, बड़ी इलायची और काफी उपजती है, इनही चीजोंका बड़ा भारी व्यापार कलीकोटमें होता है । ___ कलीकोटकी मनुष्य संख्या अनुमान ६६ हजार है । जिसमें जैनियोंकी संख्या २७ है।
कांजीवरम (कांची) मद्रास हातेके "चंगलपट्ट' जिलेमें तहसीलका सदर स्थान कांजीवरम कस्बा है । यह मद्रास हातेमें प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थस्थान और सप्त पुरियोंमेंसे एक पुरी है, "आरकोनम जंक्शनसे १८ मील दक्षिण-पूर्व ( South Indian Railway ) कांचीका स्टेशन है । शहर स्टेशनसे करीब डेड़ मील है। स्टेशनपर सवारी हरतरहकी मिलती है । कांची में कई धर्मशालाएँ हैं।
चीनके रहनेवाला “हायनसंग” सन् ६२९ से ६४५ ई० तक हिन्दुस्थानमें रहा था, उसने लिखा है कि 'कांची वौद्धोंके आधीन द्राविड़की राजधानी एक प्रसिद्ध नगर है।'