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________________ ७६४ बम्बई अहाता। बहा रही हों । भगवदर्शनके लिये आकुल हुए धर्मात्माओंके हृदयमें इस धारासे एकः अपूर्व आनंद होता है। यह जैनियोंका परमपूज्य सिद्धक्षेत्र है । निर्वाणकांडकी ऊपर लिखी गाथाके अनुसार पूर्वकालमें इस स्थानसे बलभद्रादि ८ कोटी मुनियोंने मोक्ष प्राप्त किया है। _इस क्षेत्रमें प्रतिवर्ष माघ सुदी १३ से तीन दिनतक मेला लगता है । और आसपा-- सके बहुतसे यात्री बन्दना करनेके लिये आते हैं। इस पर्वतके आस पास अनेक छोटे २ ग्राम हैं, परन्तु उन सबोंसे निकट 'मसरूल' है, यहां शोलापुरके प्रसिद्ध शेठ 'रावजी' के पिता शेठ 'नानचन्द फतेहरचंदजी' में 'नागौर' की गद्दीके स्वामी स्व० क्षेमेन्द्रकीर्ति भट्टारककी प्रेरणासे एक सुंदर मन्दिर सं० १९४२ में बनवाया और १९४३ में प्रतिष्ठा कराई थी। इस मन्दिरके चारों ओर एक कोट है, जिसके भीतर दो धर्मशालाएँ, एक कूप और बहुतसे झाड़ हैं। धर्मशालाओंमें ३०० आदमी आरामसे ठहर सकते हैं ।। इस मन्दिरका और तीर्थक्षेत्र का प्रबन्ध शोलापुरके शेठ रावजी' नानचंदजीके तरफसे वर्तमानमें पेन्शर 'बाबूराव गुरनाथ बुवने' जैन शोलापुर निवासी करते हैं। इस समय उपर्युक्त ७ प्रतिमाओंके सिवाय ४ प्रतिमाएँ शिरपुरके अंतरीक्ष पार्श्वनाथकी प्रतिमाके समान अर्धपद्मासन करीब ३ हाथ ऊंची हैं, और ७ कायोत्सर्गस्थ दिगम्बर प्रतिमाएँ करीब ३॥ हाथ ऊंची और भी हैं, जिनको बहुत अनावस्थासे मन्दिरके पीछे एक प्राचीन पत्थरके बने हुए जीर्ण मन्दिरमें अव्यवस्थितरूपसे रख दी हैं। जीर्णोद्धार करते समयमें मन्दिरका शिखर और अंदरका कुछ भाग पुराना ही रक्खा. है। यहांपर एक खण्डित शिलालेख भी पायाजाता है । जिसका सारांश यह है:__"संवत १४४१ में 'हंसराज' माता गोदीबाईने 'माणिक' स्वामीके दर्शन करके अपना जन्म सफल किया है। - कोल्हापुर। यह प्राचीन नगर कोल्हापुर रियासतकी राजधानी 'पंचगंगा नदीके किनारे वसा हुआ है। पूर्व समयमें यह स्थान जैनियोंका था ऐसा यहांपर जो 'शिलालेख' पर्वतमें खादै हुए 'गुफामन्दिर' और प्राचीन राजाओंके 'सिक्के पास हुए हैं, उनसे मालूम
SR No.010495
Book TitleBharatvarshiya Jain Digambar Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurdas Bhagavandas Johari
PublisherThakurdas Bhagavandas Johari
Publication Year1914
Total Pages446
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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