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वम्बई अहाता ।
७५३ मनुष्य संख्या है । प्राचीन पत्थरका बना हुआ एक चैत्यालय है, चैत्यालयकी भीतोंपर यक्ष यक्षिणी आदिकोंके चित्र सुन्दर खुदे हुए हैं । इस मन्दिरमें श्रीऋषभनाथस्वामीकी बृहदाकार विशाल प्रतिमा सर्वांगपूर्ण शिरपुरके अन्तरीक्ष पार्श्वनाथकी प्रतिमा समान पद्मासन विराजमान है । यहांपर 'कोपेश्वर महादेव' का मन्दिर अति प्राचीन पत्थर का बना हुआ प्रसिद्ध है । इसपर जैनियोंके शासन देवी देवताओंके मूर्तियोंकी कारीगरी का काम देखने योग्य है। प्राचीन कालमें यह मन्दिर जैनियोंकाही होगा ऐसा इसकी मूर्तियोंसे व दीवालमें स्थित हुई क्षेत्रपालकी मूर्तिसे मालूम होता है । इस मूर्तिको ब्राह्मण लोग 'ब्रह्मदेव' कहते हैं । यह मन्दिर जैनियोंकी प्राचीनताकी साक्षी दे रहा है ।
गजपन्था ।
(सिद्धक्षेत्र) संते जे बलिभद्दा जदुवणरिंदाण अट्टकोडी ओ।
गजपंथे गिरि सिहरे णिव्वाणगया णमो तेसिं ॥ १॥ वम्बई प्रान्तमें 'नासिक' (G. I. P. Ry) स्टेशनसे करीव ९ मील और नासिक • शहरसे ४ मील उत्तरकी ओर 'मसरूल' नामक एक ग्रामके निकट अनुमान एक मील
पर 'गजपंथ' पर्वत है । इसकी ऊंचाई करीव ४०० फुट है । पहाड़क शिखरपर दो दिगम्बर जैनमन्दिर हैं जो पर्वतके स्वाभाविक पापाणको काटकर बनाये गये हैं। मन्दिराम अनेक मूर्तियां है, जो भीतमें उकीरकर वनाई गई हैं । मूर्तियोंके अतिरिक्त दो स्थानों में दो चरणपादुका हैं, जिनके भव्यंजन बड़ी भक्तिसे दर्शन करते हैं । दूसरे मन्दिरकी वाई और एक जलका कुंड है इसमं निरन्तर (हमेशा) जल भरा रहता है । यात्री लोग पूजनके द्रव्यका प्रक्षालन इसकि जलसे करते हैं ।
पर्वतकी तलेटीमें भी एक वापिका है । इसका जल बहुत अच्छा रहता है । बन्दनाको जानेवाले प्रायः इसी वापिकासे पूजन द्रव्य धोया करते हैं । इस वापिकाके निकट भट्टारक 'क्षेमंद्रकीर्तिजी' की एक 'समाधि' बनी हुई है। इसमें भहारकजीके चरणोंकी स्थापना है । इस समाधिके पाससे ही पर्वतपर चढ़नेका मार्ग है । और थोड़ी दूर चढ़कर ही सीढ़ियोंका प्रारम्भ है । सीढ़ियों की संख्या ३२५ है । इन सीढ़ियोंपर सफेद कलई की गई है, इससे बहुत दूरसे दिखाई देती हैं । मन्दिर और कोटपर भी कलई की गई है। इससे सीढ़ियों सहित वह दृश्य ऐसा मनोहर जान पड़ता है, मानों यह दूधका सरोवर पर्वतके शिखरपर भरा हुआ है और सीढ़िया ऐसी जान, पड़ती हैं कि दूधकी धार