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________________ ७९२ बम्बई अहाता । खण्डहर पूर्ववैभवको दिखा रहे हैं । १६ वीं सदके प्रारंभमें यह व्यापारका प्रधान स्थान था। सन १६१३ ई० में अंग्रेज लोगोंने अपनी कोठी कायम की थी। यहां लकड़ी और पत्थरकी बनी हुई चीजें अच्छी होती हैं । यहांके बने हुए भूषण और जवाहरातके कामोंके कारण खंभात प्रसिद्ध है। नव्वाब साहबका महल और प्राचीन खण्डहर देखने योग्य हैं। शहरके मध्यमें एक दि जैन मन्दिर अति प्राचीन जीर्णावस्थामें ह । इसमें मूलनायक श्रीविमलनाथस्वामीकी प्रतिमा पद्मासन विराजमान है, कुल प्रतिसाएँ ७५ हैं । पूजन प्रक्षालका प्रबन्ध ठीक नहीं है । काणीसा और सायममाके दिजैनियोंकी तरफसे एक भाट पूजन प्रक्षाल करता है। खारेपाटन। बंबई प्रान्तके जिला रत्नागिरकि तालुका देवगढ़में यह ग्राम प्रसिद्ध है । यहांपर दिगम्बर आम्नानुयाई कासार और पंचमोंके आवाद ग्रह ७२ और इनकी मनुष्य संख्या २८० के करीब है। यहांके भाई धर्माचरणरत और उद्योगप्रिय हैं । इनके प्रयत्नसे यहां पर आठ वर्षसे “कोंकण प्रांतिक दिगम्बर जैन सभा” स्थापित है । सभाकी तरफसे एक ग्रन्थ “संग्रहालय" भी खोला है, जिसमें १७०० के करीब अन्य मौजूद हैं। करीब २८ वर्ष पहले यहां एक शिखरबन्द मन्दिर था। वर्तमानमें एक चैत्यालय नया बनवाया है। प्राचीन मन्दिरमें जो श्रीचिंतामणिपार्श्वनाथकी प्रतिमा काले पाषाणकी करीब २॥ फीट ऊँची कायोत्सर्ग फणेन्द्र युक्त विराजमान है । और प्रतिमा अति मनोहर वीतरागता दर्शानेवाली है। इसके दर्शन करनेसे चित्त आनन्द-सागरमें डूब जाता है । यह प्रतिमा कोई भाग्यवान श्रावकको नदीके किनारे गड़ी हुई मिली थी। एक और प्रतिमा श्रीआदिनाथ स्वामीकी खेतमें हल चलाते समय किसी किसानको मिली थी, किसानने पूजापाठ करनेकी शर्तपर दी है । और हर वर्षपर भाद्रपद वदी १४ के दिन तोरणके लिये “इक्षुदण्ड" भेज देते हैं। कुछ दिन पीछे कासार और पंचम जातिमें झगड़ा होनेके कारण कासार जातिने अलग नया चैत्यालय अपना बनवा लिया है। खिद्रापुर। यह ग्राम कोल्हापुर रियासतमें 'कृष्णा नदी के किनारेपर शेडवाळ' ( M. S. II रेलवे स्टेशनसे करीब ४ मील है । यहां पर दिगम्बरियोंके ४० घरोंकी करीब १३०
SR No.010495
Book TitleBharatvarshiya Jain Digambar Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurdas Bhagavandas Johari
PublisherThakurdas Bhagavandas Johari
Publication Year1914
Total Pages446
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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