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बम्बई अहाता ।
७५१ इन मन्दिरोंके अतिरिक्त उत्तरकी ओर स्वेताम्बरियोंका अनुमान ४०००) रु० की लागतका शेठ रावजी गुलाबचंद कुंभोजवालोंका मन्दिर जगवल्लभ पार्श्वनाथ नामक संगमरमरका बना हुआ अति उत्तंग प्रसिद्ध है । इसमें नक्काशीका काम अच्छा पाया जाता है । मन्दिरके प्रवेशद्वारके पास शेठ साहबने अपनी और अपने भाईकी मूर्ति रक्खी है । एक और मांदर देवीका कोल्हापुर नरेशने बनवाया है।'
श्रीक्षेत्र कुलपाक। निजाम रियासतके हैदरावाद जिलेमें अलेर स्टेशनसे ( Bajwada Lire ) करीब ४ मील कुलपाक नामक स्थान दि० जैनियोंका प्राचीन क्षेत्र है । यहां श्रीआदिनाथस्वामी की 'माणिकस्वामी' के नामसे मूलनायक प्रतिमा तथा और भी बहुतसी प्रतिमाएं हैं । परन्तु बड़े दुःखकी बात यह है कि 'सिकंदराबाद निवासी श्वेताम्बरी श्रीयुत शेठ 'पूनमचंद हीराचन्द' ने जीर्णोद्धारके बहाने यहांकी सात दिगम्बरी मूलनायककी प्रतिमाओंके चक्षु आदि चढ़ाकर प्रतिमाकी वीतरागता नष्टकर 'श्वेताम्बरी' बना ली हैं । मूलनायक प्रतिमा काले पाषाणकी अर्ध पद्मासन विराजमान है। इसके पास और भी पांच प्रतिमाएं कायोत्सर्ग तथा अर्ध पद्मासन विराजमान हैं। इनमेंसे एक हरे रंगकी प्रतिमा तेजःपुंज युक्त अति मनोज्ञ है। और एक शासनदेवीकी प्रतिमा भी है।
खम्भात। बम्बई हातके गुजरात देशमें खम्भातकी खाड़ाके शिरके पास माहीनदीके मुहानेसे उत्तर देशी राज्यकी राजधानी खम्भात अर्थात् कांवे कस्बा है। पेटलादसे खंभात तक रेल बन गई है, पेटलादसे १८ मील खंभातका स्टेशन है । स्टेशनसे शहर डेड़ मील दूर है स्टेशनपर सवारी बेलगाड़ी, घोडागाड़ी आदिकी हर समय मिलती हैं। ___ ग्यारहवीं वारहवीं सदमि "खंभात" अनाहेलवाड़ा राज्यके मुख्य बन्दर स्थानों में से एक था, सन् १२९७में जब मुसलमानोंने अनहिलवाड़ा राज्यको जीता तव खंभात हिन्दुस्तानके सबसे धनी कस्बोंमेंसे एक था। सन् १३०४ ई में दिलोके अलाउद्दीन बादशाहने खंभातको लूटा ओर यहांके मन्दिरोंको वरवाद किया। सन १३२५ की महम्मदशाहके समयकी बनी हुई एक मसजिद है, इसमें जैनमन्दिरके स्तंभ लगे हुए हैं। बहुतेरी इमारतोंके