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बम्बई अहाता ।
७५५ -होता है । ईसाकी पहली सदीमें 'अंश्वभृत्य' आदि राजाओंके अधिकारमें यह स्थान था, पीछे ५ वीं सताब्दि समाप्त होनेके समय यह 'कदंब' राजाओंके हाथमें गया, अनुमान ५५० ई० में 'चालुक्य खानदान' के राजाओने 'कदम्ब' राजाको हराया, और यह प्रान्त अपने आधीन कर ली। अनन्तर ९९३ ई० तक 'राष्ट्रकूट' वंशके राजाओंका अमल (अधिकार ) शुरू हुआ, अनन्तर चालुक्य राजाओंने राष्ट्रकूटोंसे पुनः छीन लिया -तवसे यह (१०५० ई० से ११२० ई०तक) महामंडलेश्वर या मांडलिक 'शिलाहार राजा
ओंके आधीन था। फिर १३ वीं सदी तक शिलाहार राजा बलवान हो गये । ये जैनी थे। इनमें "सिंह, भोज, वल्लाळ, गंडरादित्य, विजयादित्य और दूसरा भोज' आदि राजा बड़े २ पराक्रमी और दानशूर होगये हैं। भोज राजा जिसके आधीन सातारके उत्तरमें 'महादेव' पर्वतसे कोल्हापुरके दक्षिण तक 'हिरण्यकेशी' नामक नदी तक उसके राज्यका विस्तार था, वड़ा दानवीर और शूरवीर था। इसकी दानवीरवाके शिलालेख प्राचीन जैन मन्दिर आदि ही मालूम होते हैं। द्वतीय भोज-सिक्केभी यहांपर मिले हैं जिससे इनके कालका निर्णय हो सक्ता है। इस राजाने कोल्हापुर प्रान्तमें किले बनवाये थे, जिसमें 'बावड़ा, भूघरगद, विशाळगढ़, पन्हाळगई, पावनगढ़' आदि प्रसिद्ध है । शिलाहारों की शासन देवी पद्मावतीका मन्दिर भी इस समय 'महालक्ष्मी' नामसे कोल्हापुरमें प्रसिद्ध है। . वर्तमानमें कोल्हापुरमें दिगम्बरियोंके घर २०१ हैं जिनमें मनुष्य संख्या १०४६ है । शिखरवन्द मन्दिर ४ और ३ चैत्यालय हैं । इनमें श्रीपार्श्वनाथस्वामीके प्राचीन 'मन्दिरपर दो शिलालेख शिलाहार खानदानके राजाओंके पाये जाते हैं ।
यात्रियोंको ठहरनेके लिये दो धर्मशालाएँ मन्दिरोंके पासही हैं । शिक्षणके लिये जैन 'वोर्डिंगहौस, श्राविकाश्रम' आदि इस समय जैनसंस्थाएँ मौजूद हैं। इनके सिवाय पांजरापोळ' खोली है, जिसमें निराश्रित पशु पक्षी आदिकी रक्षा की जाती है । और यहांपर राजाराम हाईस्कूल, सरकारी मकान, बड़े २ प्राचीन स्तूप और राजमहल देखने योग्य हैं।
कोल्हापुरका सदर्न मराठा रेलवेमें स्टेशन है, स्टेशनपर हर वक्त घोड़ा गाडी आदि -सवारी किरायेपर मिलती हैं।
कोल्हापूरमें पार्श्वनाथ स्वामीके चैत्यालयके शिलालेखकी नकल । श्रीमत्परम गंभीर द्वादामोघ लांछनम् ॥ जीयात्रैलोक्य नाथस्य शासनं जिनशासनम्।। ॥ १॥ स्वस्ति समदिगत पंचमहाशब्द महामंडलेश्वरम् ॥ तगर पुरवराधीश्वरम् ॥