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बम्बई अहाता ।
औरंगाबाद। यह शहर निजाम-रियासतके जिलेका सदर मुकाम है। इसको करीब ३०० वर्ष पहिले "अहमदनगरकी अदीलशाही" रियासतके मुख्य प्रधान 'मलिकंबर' ने १६१० ई. में बसाया और इसका नाम 'खड़की रक्खा था। परन्तु जब अदीलशाहीका राज्य दहली 'के प्रसिद्ध मुगल बादशाह 'औरंगजेबने' जीत लिया और इसका नाम 'औरंगाबाद रखकर अपने सुबे (प्रान्त) का सदर मुकाम करदिया था। बादमें यह निजाम साहि
बके जिलेका सदर मुकाम होंगया । कहते हैं कि इसम पहिले ५२ मुहल्ले थे, वर्तमानमें ‘बहुत कुछ उजाड़ दशामें हैं।
यहां तथा इसके पास छोटे २ ग्रामोंमें सब मिलाकर दिगम्बरियों केघर ४० और २०० के करीब मनुष्य संख्या है। दि० जैन-मन्दिर यहां पर ५हैं। धर्मशास्त्र अनुमान २००के हैं। यहांके जैनीभाई धर्मप्रेमी और उद्योगप्रिय हैं । बेगमपुरासे उत्तरकी ओर एक मीलपर बौद्धोंकी खोहें खंडहर दशामें हैं। एक खोहमें श्रीनेमिनाथस्वामीकी प्रतिमा करीब ५ फीट ऊंची पाषाणकी शंख चिन्हांकित सिंहासनपर विराजमान है। प्रतिमाके चारों ओर यक्ष-यक्षिणी आदि द्वारपालोंकी मूर्तियां हैं । प्रतिमाके दर्शन करनेके लिये यहांके जैनीभाई हमेशा जाया करते हैं।।
औरंगाबादमें देखने योग्य स्थान दो हैं:
औरंगजेब बादशाहकी स्त्री 'रबिया दुराणी बेगम' का मकबरा जिसकी बनावट आगरेके ताजमहल' के सरीखी है और 'पवनचक्की' भी देखने योग्य है ।
एरंडोल। बम्बई अहातेंमें जिला खानदेशके सब डिवीजनोंमें खान्देशका बड़ा नगर है और जी. आई. पी. याने बम्बईकी बड़ी लैनकी शाखापर जलगांव आमलनेर स्टेशन है। एरंडोलरोडसे स्टेशनपर सवारी हमेशा किरायेपर मिलती है। . इसका प्राचीन नाम 'ऐरणवेल, अरुणावती' था । प्राचीन कालमें यहांपर बड़ी भारी जैनियोंकी वस्ती तथा ५२ जिनालय थे, परन्तु काल-दोषसे वर्तमानमें केवल एकही घर दिगम्बरजैनीका है । और ५२ जिनालय नामक दिगम्बर जैन मन्दिर “पांडववाड़ा" नामसे प्रसिद्ध है । मुसलमानोंके समयमें इस पांडववाड़ा में जो जैन मूर्तियां विराजमान थीं वे सब उन्होंने खंडित करदी । और मन्दिरोंकी मस्जिदें बनवादी गई। इस समय यह स्थल बृटिशगवर्नमेंट के हाथमें है। इसमें एक अखण्डित जैन प्रतिमा शिलालेख युक्त तथा एक प्रतिमा और जोनगर के बाहर जंगलमें मिली थी, वह ऐसी दो प्रतिमाएँ रा. रा,