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________________ ७४५ वम्बई अहाता। उखलद। ( अतिशयक्षेत्र) ' यह क्षेत्र निजाम रियासतके परभिणी जिलेमें पिंगली ( N.S.Ry.) स्टेशनसे करीब ४ मील पूर्णा नदीक किनारेपर बसा है । उखलद ग्राममें दिगम्बरियोंके केवल २ घर सैतवालोंके हैं जिनकी मनुष्य संख्या ७ है। पूर्णा नदी पूर्वसे पश्चिमको बहती है । प्राचीन जैनमंदिर पत्थका बना हुआ इसकि किनारेपर होनेके कारण यहांकी शोभा और सृष्टि सौंदर्य अत्यन्त मनोहर है । मन्दिरके आगेका हिस्सा नदीके सामने होनेके कारण उसका कुछ भाग अधिक बरसातसे गिर पड़ा है, इसलिये इसका जीर्णोद्धार होना आवश्यक हैं। इस मन्दिरमें श्री नेमिनाथस्वामीकी प्रतिमा काले पत्थर वृहदाकार अति मनोज्ञ विराजमान है । कहते हैं कि, इस प्रतिमाके दाहिने पांवेके अंगूठेके वीच एक पारस पत्थर (जिसके स्पर्शसे लोहेका सोना बन जाता है) था और यह वात, अंगूठेक. पासके चिन्हसे सत्य मालूम हाता है । प्राचीन कालमें कोई एक धर्म परायण श्रावक इस मंदिरका पुजारी था, उसका उदर निर्वाह इस पारससे होता रहता था, अर्थात् पूजाक बाद वह पुजारी प्रतिदिन उस पद-पारसको लोहेकी सुई लगाकर सोनेकी बनाता था, उसासे निर्वाह करता था । जब वह बढ़ा पुजारी धाराशायी हो गया तव उसने अपने पुत्रको अपने पास बुलाकर पारसका भेद (गुप्तरीतिसे) बतलाया,. और धर्म श्रद्धासे चलनेका उपदेश दिया। वृद्ध पुजारीके मरनेके बाद पुत्र लोभी होकर वहुत सोना पैदा किया और दुराचरणसे रहने लगा। कुछदिनोंके बाद । प्रान्तके मुसलमान अमलदारके ( राज्याधिकारी) कानों तक पहुँची । अमलदार उस पारसका निकालनेके लिये प्रतिमाके पास आया, और उसको स्पर्श करनेके लिय तैयार हुआहीथा कि उसी समय एकाएक बड़ीआवाज हुई, और प्रतिमाके अंगूठेकेबीचका पारस नदीकं गड्ढेमें गिर पड़ा। यह अतिशय देख वह मुसलमान अमलदार आश्चर्यान्वित हो गया तो भी उसका लोभरंचमात्र भी कमी नहीं हुआ, और उसने एक मस्त हाथीके पांवमें बड़ी लम्बी लोहेकी जंजीर ( संकल ) बांधकर नदमें छोड़ दिया। नदमि वह पारस था, पारसस स्पर्श हानेके कारण जंजीरकी कई कड़ियां सुवर्ण की हो गई। परन्तु पारस प्रयत्न करनेपर भी प्राप्त नहीं हुआ । उसी समयसे यह क्षेत्र आतिशय क्षेत्र नामसे प्रसिद्ध हुआ । प्रति वर्ष यहांपर माघ ५ शुक्लसे १० तक बड़ीभारी यात्रा होती है जिसमें दो हजार के लगभग यात्री इकटे होते हैं। इस मन्दिरका प्रवन्ध वर्तमानमें प्रसिद्ध धर्मात्मा श्रीयुत “सन्तोवा वजाबा अण्णा संगवे पिंपरी निवासी" के हाथमें है । पूजन-प्रक्षाल आदिका प्रवन्ध भी इस सद्गृहस्थकी प्रेरणासे अच्छा होता है।
SR No.010495
Book TitleBharatvarshiya Jain Digambar Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurdas Bhagavandas Johari
PublisherThakurdas Bhagavandas Johari
Publication Year1914
Total Pages446
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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