SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४० बम्बई अहाता। (१४) चिन्तामणिका श्वे० जैनमन्दिर-रेल्वेस्टेशनसे पूर्व सारसपुर नामक ए सुन्दर शहरतली है, सारसपुरमें सं० १८६८ में 'शान्तिदास' नामक धनी व्यापारीने यह मान्दर ९ लाख रुपयेके खर्चसे बनवाया था। इनके सिवाय लायब्रेरी, जिलेकी कचहरियां, अस्पताल, पागलखाना, कोढ़ीखाना, दवाखाना, लड़के लड़कियोंके स्कूल, कालेज मिलें, अजीमखांका महल, जो अब जेलखानेके काम आता है, और शहरसे ३३ मीलकी दूरीपर फौजी छावनी आदि कई स्थान देखने योग्य हैं। व्यापार हर तरहका होता है, यहांके सुनार ठठेरे (तमेरे ) जवाहिरी, बढ़ई, संगतराश, कागज बनानेवाले, और हाथीदांतका काम बनानेवाले कारीगर प्रसिद्ध हैं। देवताओंके मूर्तियोंके भूषण, (गहने ) बक्स, सूती कपड़े, सुनहरी रेशमी कमख्वाव, सोना चांदीकी लेस, गलीचे चमड़ेकी ढाल, इत्यादि चीजे अच्छी बनती हैं। यहांकी दस्तकारियां भी प्रसिद्ध हैं । शहरमें बड़े बड़े कोठीवाले धनवान् रहते हैं । अनेक भाँतिके कल कारखाने हैं। यहां १२ से अधिक केवल कपड़ा बुननेकी मिलें हैं । यहाकी मुख्य भाषा गुजराती है । स्टेशनके पास एक धर्मशाला है, शहरमें कई धर्मशालाएँ हैं स्टेशनपर हरतरहकी "सवारी किरायेपर मिलती है। आतनूर (श्रीचंद्रनाथजी). . मोगलाई (निजाम रि०) में शोलापुरके पास दुधनी (G.I. P.) स्टेशनसे करीब ५ मीलपर 'आतनूर' नामक छोटासा ग्राम है। यह ग्राम प्राचीन कालमें भाग्यवान था, ऐसा उसके खंडहरोंके चिन्होंसे मालूम होता है। ग्रामके बाहरी भागमें चारो ओर - खंडित प्रतिमाएं और मन्दिरोंके खण्डहरोंके चिन्ह पाये जाते हैं। १०-१२ वर्ष पहले , ग्रामसे अग्नि कोनमें जंगलमें दबा हुआ एक पत्थरका मन्दिर श्रीचन्द्रप्रभु स्वामीका. शा०'अमीचंद देवचंद आलंद' निवासीको एका एक दृष्टि गोचर हुआथा आपने अपनेको - भाग्यशाली जान कर वहांकी झाड़ी तुड़वा कर मन्दिरको साफ कराया । मन्दिरमें मूलनायक श्रीचंद्रप्रभुस्वामीकी प्रतिमा दो हाथ ऊंची काल पाषाणकी पद्मासन विराजमान है । इसके पास बाईं ओर एक शिलालेख कनड़ी लिपिमें अस्पष्ट पाया जाता है, वह यह है: "श्रीगत् सच्चिदानन्द....देवर मूर्ति....पुण्य श्री....अंशर....मार्गशीर्ष" और पीछे चौवीसीकी प्रतिमा एक पाषाणमें खुदी हुई रक्खी है । मन्दिरमें और भी तीन प्रतिमाएँ कायोत्सर्ग १॥ फुट ऊंची विराजमान हैं। इनके पास और एक चौवीसीकी प्रतिमा है। दूसरी बाजूमें श्रीवीरनाथस्वामीकी प्रतिमा पद्मासनस्थ है । इस प्रतिमाके
SR No.010495
Book TitleBharatvarshiya Jain Digambar Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurdas Bhagavandas Johari
PublisherThakurdas Bhagavandas Johari
Publication Year1914
Total Pages446
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy