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बम्बई अहाता ।
७४१ दोनों बाजुआम इन्द्र चमर ढालते हैं। और एक या दो मन्दिर ग्राममें भी हैं परन्तु उनमें प्रतिमा विराजमान नहीं है। ग्राममें जैना भाईयोंके केवल २ घर हैं। इस मन्दिरको पूजन-प्रक्षालका प्रबंध शेठ 'अमीचंद देवचंद' की तरफसे एक उपाध्या २५ ) सालनापर करता है।
आरटाल। जिला धारवाड़' की तहसील 'वकापुर' में धुंडसीके पास 'आरटाल' क्षेत्र है। रेलवे लैंन पास न हानेसे यात्रियोंको मद्रास और सदर्न मरहठा रल्वेके 'हुवली' स्टेशनपर उतरना चाहिये । स्टेशनसे आरटाल करीव २४ मील नैऋत्य कोनमें है । स्टेशनपर गाड़ी घोड़ा आदि सवारी हरवक्त किरायेपर मिलती है । ग्राममें जैनियोंकी वस्ती नाम मात्र है। ग्रामके पास जंगलमें अति प्राचीन शिखरवन्द पाषाणका बना हुआ मन्दिर अति उतंग है । इसमें श्रीपार्श्वनाथ २३ वें तीर्थंकरकी प्रतिमा पाषाणकी वृहदाकार कायोत्सर्ग विराजमान है । इस मूतिक पास एक शिलालेख प्राचीन कनड़ी लिपिमें पाया जाताहै जिसकी नकल नीचे दीगई है । मन्दिरके पास ही एक तालाब है। तालाबमें जल कम होनेसे यात्रियोंको बड़ी तकलीफ होती है। इस देवस्थानके प्रबन्धके लिये सरकारसे २ एकड़ जमीन इनाम है। पूजनके लिये धुंडशी ग्रामसे पुजारी प्रतिदिन आता है ठहरनेके लिये धर्मशाला नहीं है।
इस क्षेत्रपर संवत् १९६७ में मन्दिरके जीर्णोद्धारके लिये कर्नाटक सीमा धारवाड़में "प्रान्तिक जैन महासभा" स्वस्ति-'श्रीजिनसेन' भट्टारक स्वामी मठ नांदणीके सभापतित्वमें स्थापित हुई है।
आरटाळ पार्श्वनाथ मंदिरका
शिलालेख.
श्रीमत्परमगंभीर स्याद्वादामोघ लांछनम् ।
जीय्यात्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् १ . " . स्वस्ति यम नियम स्वाध्याय ध्यान मौनानुष्ठान समाधि शीलगुण संपन्नरप्प कनकचंद्र सिद्धांत देवरगुडं गंगर वोम्मशट्टि माडिसिदवसदि मंगलमहा ।