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राजपूताना-मालवा। जमा होते हैं। यहांपर विशेष अधिकार जयपुरवाले भट्टारकका है । वर्तमानमें जैनपाठ शाला' की स्थापना हुई है। __बस्तीक चारों ओर एक २ मील दूरीतक शिकार खेलनेकी सख्त मनाई है, ऐसा साईनवोर्ड ( तख्ता) भी लगा हुआ है । इस शहरके अन्दर मद्य मांस आदिकी दूकानें बिलकुल नहीं है । यहांके वर्तमान महाराजा सा० बड़े दया प्रेमी हैं, और इसी कारणसे दशहरेके दिनमें जो बलिदान आदिमें जीवहिंसा होती थी वह बिल्कुल बन्द करादी है। - व्यापार यहांपर मध्यम स्थितिका है स्व० शेठ बिनोदीराम बालचंदजी नामी धनी हैं, आपकी कई दूकानें बड़े बड़े शहरोंमें हैं।
टोंक। जयपुरसे करीब ६५ मील दक्षिण, जयपुरसे बूंदी जाने वाली सड़कपर प्रायः दोनोंके बीच में बनास नदीके दहिने किनारेसे एक मील दक्षिणकी ओर देशी राज्यकी राजधानी टोंक एक छोटा शहर है, यहां रेलकी सड़क नहीं है, शहर दीवारसे घिरा हुआ है, 'घेरेके भीतर मिट्टीका किला है। शहरमें नब्बावका महल कचहरियां' और कई उद्यान (बगीचा) देखनेके योग्य हैं। ___ राजपूताने में केवल यही मुसलमानी रियासत है, मनुष्य संख्याके अनुसार हिन्दुस्थानमें ८६ वां और राजपूतानेमें ७ वां शहर है । टोंक राज्यकी नीव डालने वाले
अमीरखां' १७९८ ई० में जबकि ३० वर्षका था, हुल्करके आधीन एक बड़ी सेनाका कमांडर हुआ, दुल्करने इसकी वीरतासे प्रसन्न होकर सन् १८०६ ई० मे टोंकका राज्य अमीरखां को दे दिया । ममीरखाने सन् १८०९ में नागपुरके राजा भोंसलापर चदाईकी, लौटते समय सेनाने देशको लूटा।
अंग्रेजोंने सन् १८१७ ई, में पिंडारियों ( डाकुओं) को दबानेके लिये टोंक को राज्य देकर सुलह करली।
वर्तमानमें येकके नबाब मुहम्मद इब्राहीम अलीखां बहादुर सैलातजंग जी० सी० एस० आई० हैं।
टोंकमें खंडेलवाल और अग्रवालोंके २९६ घरोंकी मनुष्य-संख्या ८१५ है। यहां नैनी आढ़त सराफी किरानेकी दूकान आदि धंदा (व्यापार ) करते हैं, सारी मुलाजिम भी कई हैं। ५ शिखरबंद मन्दिर ४ चैत्यालय और २ नशियां बस्त्रीके बाहर है। एक नशियां में प्रतिमा नहीं है । और दो जैनपाठशालाएँ भी हैं।