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राजपूताना-मालवा।
४८७ राजपूत झालाराजवंशज महाराज 'जालिमसिंहने झालरापाटनके वर्तमान कस्खेको वसाया और उससे ४ मील उत्तर छावनी बनाई, और वहींपर झालावाड़ नरेशके रहनेके महल बने हुए हैं। शहरके दक्षिणमें 'सासबहू' नामक तालाव प्रसिद्ध है, इसका घेरा करीब, चार मील है, और इसपर अच्छे अच्छे घाट बने हुए है । इसके नजदीक 'अथेरिया' नामक वाग बना हुआ है, जिसमें बहुतसे लोग हवा खानेको आया करते हैं । इससे ४ फाग दूरीपर एक और तालाव २ मील घेरेका भवानी सागर' नामसे प्रसिद्ध है।
और पासही द्वारकाधीशका' सुन्दर मन्दिर बना हुआ है, इसीके पास 'राज मन्दिर है । शहरके तीन ओर दीवाल और खाई है।
दिगम्बर जैनियोंके यहां २०७ घर और ६११ मनुष्यसंख्या है। ये सब धर्मप्रेमी और व्यापारी है । १२ शिखरवंद मंदिर और २ चैत्यालय हैं, जिनमें एक मन्दिर शहरके वाहिर करीव १००० ईखीका बना हुआ श्री पद्मनाथस्वामीके नामसे प्रसिद्ध । है। इस मन्दिरकी ईशान दिशामें श्रीशान्तिनाथस्वामीका वडाभारी (आलीसान) मन्दिर अतिशोभायमान करीब चार लाख रुपयोंकी लागतका संवत् ११०० के लगभगका वनों हुआ है।
इस मन्दिरमं जो श्रीशान्तिनाथस्वामीकी प्रतिमा खड्गासन गेहुआं वर्ण (रंग) की लगभग ११ फुट अवगाहनाकी है । सवंत् ११०३ में प्रतिष्ठा हुई थी। स्थान वस्तीसे वाहर करीव २ मीलके फासलेपर अति मनोहर है, यहां कुछ खंडित प्रतिमाएँ और पुरानी नशियाँके खंडहर वा एक शिलालेख है, शिलालेख अस्पष्ट होने के कारण पढ़ा . नहीं जाता है। यहांपर जो श्रीशान्तिनाथस्वामीकी. प्रतिमा पहिले जमीनके अन्दरं होनेसे सिर्फ मस्तक और कंठ दिखाई देता था जिसको वहाँके रहनेवाले अहीर जातिक लोग पूजते थे। बाद किसी धर्मात्मा जैनी भाईको स्वम देकर यह प्रतिमा प्रात हुई । प्रतिवर्ष दो हजारके करीव यात्री जन बहुत दर २ से वन्दनाके लिये आते हैं, प्रतिवर्ष रथयात्राका मेला आश्विन मुदी १५ को करीब ५० वर्षसे वरावर भरता है । रथयात्रा वस्तीसे वाहर एक मील दरीपर नशियां में होती है,यह नशियां शिखरवन्द अतिविशाल है, जिसके पूजन प्रक्षालका इन्तजाम श्रीशान्तिनाथस्वामीके मन्दिरसे चलता है । इस नशियाँपर एक बावड़ी वा सघन हरे भरे पेड़ अतिशोभायमान मनको प्रफुल्लित करने वाले हैं। यहां पैतीस वर्ष पहिले पं० चम्पालालजी हमश्रावक जामी विद्वान हो गये हैं, जिन्होंने 'चर्चासागर' नामक ग्रंथ एकत्र किया है । यहांके मन्दिरीमें करीव १००० धर्मशास्त्र हैं। मन्दिरोंका प्रवन्ध पञ्चोंकी तरफसे बहुत अच्छा होता है । शास्त्रसभा प्रतिदिन होती है, जिसमें ५०-६० के लगभग स्त्रीपुरुष