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राजपूताना - मालवा ।
डूंगरपुर ।
बांसवाड़ा से लगभग ४५ मील नीमचसे डीसा तक जो सड़क गई है, उसके पास नीमचसे १३९ मील राजपूताने में देशी रजवाड़ेकी राजधानी डूंगरपुर है, यहां रेल नहीं है | स्टेशनसे डूंगरपुर तक जानेको बैलगाड़ी किराये पर मिलती है । निकटवर्ती स्टेशन 'उदयपुर' और 'तलोद' है ।
पहाड़ीकी बगलपर महारावलका 'महल' पादमूलके पास, झील, जेलखाना देखने योग्य हैं । यहां प्रतिवर्ष मेला भरता है, जो १५ दिन तक रहता है ।
डूंगरपुरका राजवंश 'सीसोदिया राजपूत है । यह प्रान्त पहाड़ी होनेके कारण भीलोंकी संख्या अधिक है। यहांपर दि० जैनियोंके वीसाहूमड़ दशाहूमड़ नरसिंहपुरावीसा नागदावीसा आदि जातियोंके १०२ घरोंकी ३२१ मनुष्यसंख्या है, ४ शिखरवंद मंदिर है, मन्दिरमें धर्मशास्त्र ६० है, कुछ ग्रंथ ताड़पत्रोंपर लिखे हुए हैं ।
डूंगरपुरसे २ मील की दूरी पर सुरपुर ग्राम में एक शिखर बंद मन्दिर है, इस मंदिरके पूजन प्रक्षालका प्रबंध डूंगरपुर के पंच करते है, प्रतिवर्ष कुआंर वदी प्रतिपदा ( पड़वा -- परमा) को यहां मेला भरता है, मेला एक दिन रहता है । मेलमें श्वेताम्बर और वैष्णव भी आते है। सुरपुर ग्राम में जैनियोंका एक भी घर नहीं है ।
डूंगरपुर के निकटवर्ती 'सापी' ग्राममें एक शिखरवंद मन्दिर है, मंदिरमें पूजन प्रक्षाल भी नहीं होता है, कहते हैं कि पहले इस ग्राममें नागदा जाति के ४० घर थे, परन्तु अब एक भी नहीं हैं। चुडावाड़ा ग्राम में भी एक शिखरवंद मन्दिर ग्रामसे दो मीलकी दूरीपर पहाड़ की झील में है, प्रक्षाल प्रति रविवारको एक ब्राह्मण पुजारी करता है यहां पर कई अतिशय लोगोंने देखे हैं ।
डूंगरपुर में व्यापार प्रायः सब चीजांका होता है, परन्तु अफीमका अधिक होता है । डूंगरपुरका सफेद पत्थर जिससे मूर्तियां प्याले बनते है प्रसिद्ध है ।
तालनपुर ।
( अतिशय क्षेत्र )
इन्दौर रियासत में यह क्षेत्र कूकसी ग्रामसे ३ मीलकी दूरीपर बड़वानीसें ८ मीलकी दूरी पर है, बैलगाड़ी घोड़ागाड़ीका रास्ता है । यहांपर वि० सं० १८९८ में १४ प्रतिविम्व अनेक तीर्थंकरोंकी जमीनके अन्दरसे किसी एक किसानको हल जोतते समय मिली थीं । कहते हैं कि शामके समय एक किसानका इल मटक गया, प्रयत्न करनेपर भी न निकल सका बाद रात्रिमें किसी भाग्यशाली को स्वम हुआ