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मध्यप्रदेश। श्री अतिशय क्षेत्र
रामटेक।
मध्यप्रदेशके. जिला नागपुरसे २४ मीलके फासलेपर यह नगर है। नागपुर जंकशन (G. L. P. Ry.) से एक लैन रामटेकतक गई है। स्टेशनसे नगर ३ मील है।.. यह जगह सदा पवित्र मानी गई है। दिगम्बर जैनियोंके यहांपर केवल १६ गृह हैं और, मनुष्यसंख्या ७२ है। और दो धर्मशाला हैं । यहांपर दिगम्बर आम्नायके मन्दिरजी आठ हैं जिनमें (१) एक ग्रामके बाहर प्रदेशमें बहुत प्राचीन मन्दिरजी हैं जिसमें श्रीशन्तिनाथ स्वामीकी प्रतिमा वेदीमें विराजमान हैं। सबसे पुराना मन्दिर (२) सुर्ख पत्यरोंका बना हुआ है और नगरके उत्तरकी तरफ पहाड़ीके तलेटीमें है । इस मन्दिरमें वेदमें श्रीमत् शान्तनाथस्वामी सोलहवें तीर्थकरकी प्रतिमा चतुर्थ कालकी अति मनोज्ञ (कायोत्सर्ग) १५ फीट ऊंची पीले पाषाणकी विराजमान है। और इसके बांये तरफ .
और दो मूर्ति पत्थरमें खुदे हुए छत्रोंसे विराजमान हैं। इस मन्दिरके सामने (३) छो. दासा मन्दिरजी संवत १९२५में बना हुआ है जिसमें दर्शन ३ जगह है । सीधी वाजपर (४) एक जिनमन्दिर शिखरबन्द है जिसमें दर्शन २ जगह हैं । इसके सामने भी (१) एक शिखरवन्द मन्दिरजी हैं जिसमें दर्शन ३ जगह हैं । इसकी स्थापना संवत १९०४ में हुई है । (६-७) ऐसेही वांयें वाजूमें भी आमने सामने दो मन्दिरजी शिखरवन्द हैं । जिनमें दर्शन ६ जगह हैं। इन मन्दिरोंकी स्थापना सं० १९०२ में हुई है । (८) यहांसे नजीक एक दिगम्बर जैन धर्मशाला है जिसमें एक चैत्यालय है इसमें एक प्राचीन सं०२४७ मार्ते श्रीनेमिनाथ स्वामीकी विराजमान है । कहते हैं कि यह मूर्ति सापा गांवसे लाई है।
पहाड़ीपर हिंदुओंका सबसे पुराना मन्दिर सुर्ख पत्थरोंका बना हुआ है और नगरके उत्तरकी तरफ है । पहाडीके पश्चिम किनारेपर श्रीरामचंद्रजीका मन्दिर सबसे
बढ़कर है।
. इस क्षेत्रक संबंधों एक दंतकथा है। दोसो वर्षके पूर्वमें नागपुरका राजा आप्पा साहेव-भोसला जो प्रजाहिततत्पर और धर्मशील थे। वे एक समय अपने, मंत्री वर्धमान,
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