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मध्यप्रदेश। ___ यहांपर दि० जैन मन्दिरजी दो हैं। स्थानीय भाई उनका प्रबन्ध ठीक रखते हैं। इन सज्जनोंने अनुमान १०००० दश सहस्र मुद्रा व्यय करके अत्यन्त सुंदर और सुखप्रद शालागृह बनवाया है। भाई कन्हैयालालजी रतनचंदजी सवाई सिंघईके प्रयत्नसे यह शिक्षागृह बना है। श्रीयुत पण्डित शिखरचंद्रजी. जैन तथा श्रीयुत पण्डित वंश गोपालजी शर्मा स्थानीय भाईयोंके ओरसे बालकोंको शिक्षा देते हैं।
मूर्तजापुर (आकोला)।
2:00जी. आई. पी. रेलवेका खास स्टेशन मुंबई-नागपुर लाईनपर है और इसके दो टुकडे आबाद हैं कुछ स्टेशनके पास बसता है और कुछ स्टेशनसे १ मील दूरीपर ग्राम है। यहांपर दिगम्बर जैनियोंके २३ गृह हैं और मनुष्यसंख्या १३२ है । और दो मन्दिरजी हैं जिनमें २० धर्मशास्त्र हैं। एक मुसाफिरखाना ठहरनेको है। मूर्तिजापुरके स्टेशनके पास भी रुई दाबने और रुई निकालनेकी कलें हैं। अनाज और रुईका .व्यापार होता है । यहांसे कारंजा जाना होता है ।
रनेह।
---- यह पुराना ग्राम जिला दमोहमें हटासे ९ मील पूर्वमें है। यहांपर दिगम्बर जैनियोंकी मनुष्यसंख्या २६ तथा गृह ७ हैं और दो चैत्यालय भी हैं । यहांसे कसारी ग्रामको जाते समय करीब १ मीलके फासलेपर एक तालाबके किनारे१२दिगम्बर जैन प्रतिमाजी खण्डित पडी हैं । यह प्रतिमाएँ मैदानमें हैं जिनमें एक प्रतिमा श्री महावीरस्वमी अन्तिम तीर्थकरकी ९ फीट ऊंची खगासन स्थित है जिसे कृषकगण 'स्यामलियाजी' की मूर्ति कहकर पूजते हैं । दरयाफ्त करनेसे इन प्रतिमाओंका कुछभी विवरण ज्ञात न हुआ।लोगोनें - कहा कि हम हमेशासे इन्हें यही देखते आते हैं। इसीतरह ग्रामके दूसरी ओर भी एक प्रतिमा खड्गासन खण्डित पडी है ।
इस ग्राममें १६ तालाब हैं जिनमें सिंघाडे आदि बहुत पैदा होते हैं । वसंतऋतु और ग्रीष्मऋतुमें तालाबमें जल रहता नहीं। यहांपर देशी टाटपट्टि, दुसूती . चारखाने, चदरे आदि अच्छे बनते हैं।