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________________ मध्यप्रदेश। " , प्राकृत निर्वाणकांडमें इस क्षेत्रको अचलापुरके निकट बतलाया है । वर्तमान एलिचपुर अचलापुरका अपभ्रंश मालूम होता है । परन्तु ऐसा भी जान पड़ता है कि, संवत् १११५ में एक एल नामका राजा हो गया है, उसीसे एलिचपुर नाम पड़ा होगा। यह एल राजा जैनधर्मका धारण करनेवाला था। (देखो, इम्पीरियल ग्याजीटीयर ऑफ इंडिया वोल्यूम १२) मेंदगिरी वा मुक्तागिरी। • इस पर्वतपरसे साढ़े तीन कोटि मुनियोंने मोक्ष प्राप्त किया है, इसलिये इसे सिद्धक्षेत्र वा निर्वाणभूमि कहते हैं । इस तीर्थके दर्शन करनेका बड़ा भारी माहात्म्य है। अनेक मुनि यहांसे कर्मबन्धनसे मुक्त हुए हैं, इसीलिये इस तीर्थका नाम मुक्तगिरि वा मुक्तागिरि पडाहोगा। और एक मेंढ़े (भेड़) ने इस पर्वतके जिनदेवोंको नमस्कार करते हुए प्राण छोड़ा था, और उस समयके शुभ परिणामोंके फलसे उसने देवगति प्राप्त की थी, इस कारण इसे मेंदगिरि भी कहते हैं । इसके सिवाय बेतूल ग्याजीटियरमें मेंदगिरि के विषयमें नीचे लिखी किंवदन्ती लिखी है : "पूर्वकालमें इस पर्वतपर एक गड़रिया लगभग एक हजार भेड़ोंका पालन करता हुआ रहता था । भड़ें सारे दिन पर्वतपर चरती रहती थीं और संध्याको अपने घर आजाती थीं। एक दिन जब आधी ही भेड़ें वापिस आई, तब गड़रिया उनकी खोजमें निकला । निदान जिस मन्दिरमें सुवर्णकी प्रतिमा है, उस मन्दिरके भागे उसे सब भेड़ें चरती हुई दिखलाई दी। इसके पहले उक्त स्थल जहां कि मन्दिर है किसीको मालूम नहीं था। यह बात जब लोगोंको विदित हुई, तब उन्होंने पुराणवर्णित मेंढगिरि इसी स्थानको समझकर यहां और भी नवीन जैनमन्दिर बनवाये और उसी समयसे यहां कार्तिक सुंदी १५ को मेला भरने लगा । इस क्षेत्रके विषयमें यूरोपियन लोगोंको ऐसा श्रद्धान हो गया है कि, इस तीर्थका यदि एक बार भी दर्शन हो जाता है, तो खूब तरक्की होती है और धन भी प्राप्त होता है। "
SR No.010495
Book TitleBharatvarshiya Jain Digambar Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurdas Bhagavandas Johari
PublisherThakurdas Bhagavandas Johari
Publication Year1914
Total Pages446
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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