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मध्यप्रदेश । धवधवेके पुलसे मार्ग जाता है। इस मार्गसे नं० २६ और २७ के मन्दिर मिलते हैं । पहलेमें पादुका और दूसरे में संवत् १५४० की पार्श्वनाथकी मूर्ति है । फिर २८-२९-३० नं० के मंदिर मिलते हैं। पिछले मन्दिरमें एक भोहरा है । आगे दाहिनी ओरसे १३ सीढ़ियां नीचे उतरनेपर एक दाहलान (नं० ३१) मिलता है । इसमें पुरुषभर उंची शान्तिनाथकी दो खड्गासन प्रतिमाएं हैं । मध्य भागमें पहले प्रतिमा होगी, परन्तु इस समय नहीं है । यहांसे कुछ ऊपर जाकर फिर दाहिनी ओरसे नीचे उतरते हैं जहां कि एक पुरानी परन्तु उत्तम धर्मशाला बनी हुई है।
नीचे नं० ३२ के मंदिर में श्री आदिनाथकी प्रतिमा और ३३वें में पादुकाएं हैं। नं० ३४ के मन्दिरमें सं० १५६६ की तीन मूर्तियां हैं। भीतपर २४ तीर्थकरोंकी प्रतिमाएं हैं । इस मन्दिरका शिल्पकार्य भी दर्शनीय है । २०३५के मन्दिरमें वाहर ४. खंभे हैं, जिनमें भगवानकी मूर्तियां और शिलालेख हैं। परन्तु शिलालेख विलकुल ही नहीं दिखलाई देता है । भीतर एक बाहुबलि स्वामीकी और ५-६ दूसरी पंचपरमेष्ठी, नन्दीश्वर, सहस्रविम्ब आदिकी प्रतिमाएं हैं। गृहमन्दिर श्रवणवेलगुलके मंदिरके ढंगपर बना है । इसका शिल्पकार्य भी अच्छा है । नं०३६ के मन्दिरमें देवीकी प्रतिमा है, जिसे देवी अम्बिका कहते हैं। इसके समीप ही एक जलकुंड हैं। नं०३७के मन्दिरमें एकरलत्रयकी पाषाण मूर्ति है, परन्तु उसकी दोनों ओरकी प्रतिमाएं खंडित हैं । २०३८ में पादुका और नं०३९ में एक प्रतिमा है।
इस प्रकार सब मिलाकर ८ मंदिर हैं । इनके सिवाय चार मंदिर और हैं, परंतु वे धराशायी हो रहे हैं।
- मन्दिरोंका समय।
प्रतिमाओंमें जो शिलालेख हैं, उनसे ये मंदिर१५ - १६ वे शत्कके मालुम होते हैं। परन्तु धवधव (कूड़ा) केपासकेमन्दिरको देखनेसे यह स्थान बहुत प्राचीन मालुम पडता है। बैतूलके एकस्ट्रा अ० कमिश्नर रायवहादुर वाबू हीरालालजी बी. ए. के पास जो अचलापुरी काताम्रपट है, उससे राजा श्रेणिक (विविम्सार ) वा उसके पिता उपश्रेणिकका इस पर्वतसे कुछ सम्बन्ध मालम पडता है । सो उक्त ताम्रपट्टसे इस तीर्थको प्राचीनता ढ़ाई हजार वर्षके लगभगकी ठहरती है।