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नारक-वर्णन 'पांच ऊँगलियों में से क्रम पूर्वक एक के पश्चात् दूसरी का ग्रहण करना आनुपूर्वी से ग्रहण करना कहलाता है और चीच में की किसी उँगली को छोड़कर आगे वाली को ग्रहण करना विना आनुपूर्वी के ग्रहण करना कहलाता है।
• भगवान्-हे गौतम । श्रानुपूर्वी-क्रम से पुद्गलों को प्रहण करते हैं, अनानुपूर्वी से नहीं।
गौतम स्वामी-भगवन् ! नारकी जीव ानुपूर्वी से पुद्गलों का आहार करते हैं तो किस दिशा के पुद्गलों का माहार करते हैं ? पूर्व आदि में से किसी एक दिशा में स्थित पुद्गलों का या छहों दिशाओं में स्थित पुद्गलों का?
भगवान्-नियम से छहों दिशाओं में स्थित पुद्गलों का .आहार करते हैं।
- इस प्रश्नोचर को किंचित् स्पष्ट करने की आवश्यकता · है। नरक के जीव चौदह राजू लोक के मध्यवर्ती हैं और मध्यवर्ती होने से छहों दिशाएँ लगती हैं। प्रसनाड़ी के बाहर के जीव के आहार की तीन, चार, पाँच या छह दिशाएँ भी होती हैं । पृथ्वीकाय का जीव, लोक के कोने में जाकर आहार करता है तो तीन दिशाओं का आहार करता है। इसी प्रकार दो तरफ अलोक और चार तरफ लोक हो तो चार दिशाओं के 'पुद्गलों का आहार होता है। पांच पोर लोक हो तो पांच दिशाओं के पुद्गलों का और मध्य में छहों दिशाओं के पुद्गलों का मादार हो जाता है।