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श्रीभगवती सूत्र
[३२] .पहले वर्ण का साधारणं वर्णन किया जा चुका है। यहां उसके श्रवान्तर भेद बतलाये जाते हैं।
भगवान् कहते हैं-हे गौतम! यह आहार का समुश्चय वर्णन किया गया है। श्रव नरक योनि और असुर-योनि के जीवों के प्राहार का अन्तर बतलाते हैं । नरक के जीव जो श्राहार करते हैं वह वर्ण से काला और नीला होता है। गंध से दुर्गन्ध युक्त होता है । रस से तिक और कटुक होता है । स्पर्श की अपेक्षा भारी, खुरदरा, शीत और रूखा होता है।
. निश्चय में यद्यपि पांचों वर्ण विद्यमान हैं, तथापि व्यवहार में काले और नीले वर्ण का आहार करते हैं । इसी प्रकार अन्यत्र समझना चाहिए .। यहां जो वर्ण, रस, गंध और स्पर्श बतलाये गये हैं, वह सय अशुभ समझना चाहिए।
नरक के जीवों के आहार में भेद भी है। पहले नरक के जीव जिस प्रकार का आहार करते हैं, दूसरे नरक वाले दूसरी ही तरह का करते हैं । इसी तरह आगे के नरकों का समझ लेना चाहिए।
साथ ही यह भी स्मरण रखना चाहिए कि नरक के आहार का यहां जो वर्णन किया गया है, वह मिथ्या दृष्टि की अपेक्षा है । भावी तीर्थंकर की अपेक्षा यह वर्णन नहीं है।
नरक का जो वर्णन उपर किया गया है, वह यद्यपि सत्य है; तथापि यह भी सत्य है कि जय उपादान अच्छा