________________
[३६]
L-1
--
नारक-वर्सन . सूर्य जिस ओर से निकलता है, उस ओर मुंह करके खड़ा होने से मुँह के सामने की दिशा पूर्व दिशा होगी। - दाहिने हाथ की तरफ दक्षिण दिशा, वायें हाथ की ओर उत्तर दिशा और पीठ की तरफ पश्चिम दिशा होगी। ऊपर की ओर ऊर्ध्व दिशा और नीचे की तरफ अघोदिशा कहलाएगी। यह दिशाएँ मेरू के हिसाव से नहीं है, किन्तु अपने हिसाब
से हैं । गौतम स्वामी ने जिन तीन दिशाओं को लेकर प्रश्न ., किया है, वे नरक की अपेक्षा हैं ।
गौतम-भगवन् ! अगर नरक के जीव तीनों दिशाओं के पुद्गलों का आहार करते हैं तो आदि समय में आहार करते हैं, मध्य समय में आहार करते हैं या अन्त समय में माहार करते हैं।
भगवान्-हे गौतम ! तीनों समयों में प्राहार करते हैं। अर्थात् आभोगनिर्वर्तित आहार को आदि समय में भी ग्रहण करते हैं, मध्यं समय में और अन्तिम समय में भी प्रहण करते हैं। .
यहां यह शंका हो सकती है कि पहले यह कहा जा चुका है कि नारकी अनन्तर अवगाढ़ पुद्गलों का आहार नहीं करते । मगर यहां प्रादि समय में श्राहार करना कहा है-यह
अनन्तर अवगाढ़ हो जाता है। ऐसी स्थिति में पूर्वापर-वि. .. रोध दोष पाता है। इस शंका का समाधान यह है कि दोनों
कथनों में विरोध नहीं है । पूर्व कथन ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा से है और यह कथन व्यवहारनय से किया गया है। अनामोगनिवर्तित आहार का तो यहाँ प्रकरणं ही नहीं है, चाभो