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________________ श्रीभगवती सूत्र [३८] यहां अाशंका की जा सकती है कि छोटे और बड़े पुद्गल से क्या तात्पर्य समझना चाहिए? छोटापन और बड़ापन, सापेक्ष हैं। यह बड़ा है और यह छोटा है, यह नियत नहीं है. । जो किसी अपेक्षा छोटा है, वही दूसरी अपेक्षा से बड़ा होता है और जो एक रक्षा से बड़ा है,, वह. दूसरी अपेक्षा से छोटा भी होता है । इस प्रकार छोटापन और बड़ापंन सापेक्ष है अतएव अनियत हैं। नरक के जीव जिन पुद्गलों का श्राहार करते हैं, उनमें. से कोई एक पुद्गल अगर दूसरे से एक प्रदेश भी बड़ा है तो वह बड़ा कहलायगा जो अधिक प्रदेश बड़ा है वह भी बड़ा कहलायगा और वह उस बड़े से भी बड़ा कहलायगा, मगर इस अधिक बड़े की अपेक्षा वह बड़ा भी छोटा कहा जा सकता है। पहली उँगली, दूसरी की अपेक्षा छोटी है। दूसरी बड़ी है । मगर तीसरी की अपेक्षा यह दूसरी भी छोटी है। यही बात प्रत्यक वस्तु के विषय में समझी जा सकती है। गौतम स्वामी- भगवन् ! 'नरंक के जीव जिन छोटे-बड़े. पुद्गलों का आहार करते हैं, वे ऊँची दिशा से आये हुए होते है, नीची दिशा से आये हुए होते हैं, या तिरछी दिशा से आये हुए होते हैं ? . .. .. . : भगवान् गौतम ! नरक के जीव तीनों दिशाओं से आये पुद्गलों का आहार करते हैं। यहां गौतम स्वामी ने तीन ही दिशाओं को लेकर प्रश्न किया.है । ऊर्ध्व-दिशा और अघों-दिशातो है ही, तिरछी दिशा में चारों ही दिशाओं का समावेश हो जाता है।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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