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________________ श्रीभगवती सूत्र [३८६] कहलायगा। असंख्यात गुण काला हमें प्रतीत नहीं होता। उसे विशिष्ट शानी ही जान पाते हैं। इस प्रकार का सूक्ष्म वस्तु-तत्त्व-निरूपण जैन शास्त्रों में ही पाया जाता है, अन्यत्र कहीं दृष्टिगोचर नहीं होता। इसका कारण यह है कि जिसने जाना-देखा, उसने वर्णन किया । जिसने जाना-देखा ही नहीं, वह वर्णन कैसे कर सकता है ? गौतम स्वामी ने प्रश्न किया~भगवान् ! नारकी एक गुण खुरदरे पुद्गल का आहार करते हैं, या असंख्यातगुण खुरदरे का अथवा अनन्त गुण खुरदरे पुद्गल का! भगवान् ने फरमाया-गौतम ! सभी प्रकार के खुरदरे पुद्गल का आहार करते हैं। आहार के विषय में यह सिं प्रश्न हुए। स्पर्श आठ हैं उनमें से एक स्पर्श के विपय में प्रश्न और उत्तर है। शेष सात स्पर्शों के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए । अतः कुल सत्ताईस प्रश्न और सत्ताईस उत्तर हुए। गौतम स्वामी भगवन् ! नारकी जीव स्पर्श किये जा सकने वाल-छूने में आ सकने योग्य-पुदगलों का आहार करते हैं या स्पर्श न किये जा सकने योग्य पुद्गलों का ? भगवान् गौतम ! स्पर्श किये जा सकने योग्य पद्गलों का ही आहार करते हैं । जो पुद्गल छुए नहीं जा सकते, उनका आहार नहीं करते। ।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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