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________________ [३८५] नारक-वर्णन काला, कोई असंख्यात गुण काला, कोई अनन्त गुण काला होता है । नारकी जीवों के श्राहार में एक गुण काले पुद्गल भी होते हैं, दसगुणं काले भी और असंख्यात तथा अनन्त गुण काले भी होते हैं। यहां काले पुद्गलों के संबंध में जो कथन किया गया है, वही अन्य वर्ण वाले पुद्गलों के विषय में तथा रस एवं गंध आदि के विषय में भी समझ लेना चाहिए । यहां तक अठारह द्वार पूर्ण हो जाते हैं। इसके अनन्तर गौतम स्वामी ने स्पर्श की अपेक्षा प्रश्न किया है। उत्तर में भगवान् ने फरमाया है-एक स्पर्श वाले, दो स्पर्श वाले और तीन स्पर्श वाले पुद्गलोकानारकीजीव आहार नहीं करते । कारण यह है कि एक स्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करना असंभव है और दो तथा तीन स्पर्श वाले पुद्गल अल्प प्रदेशी और सूक्ष्म परिणमन वाले होने के कारण ग्रहण के योग्य नहीं है । अतएव चार स्पर्श वाले पुद्गलों से लगाकर आठ आर्श वाले पुद्गलों तक का श्राहार करते हैं । यह पुद्गल वहुप्रदेशी और बादरपरिमाण वाले होने से ग्रहण करने योग्य होते हैं। प्रश्न हो सकता है कि एक गुण काला और अनन्तगुण काला कहने का क्या अभिप्राय है ? इसका उत्तर यह है कि गुण शब्द से यहाँ डिगरी या अंश अर्थ समझना चाहिए। उदाहरणार्थ-किसी वस्त्र को काला रंगने के लिए एकवार काले रंग में डुबोया। एकवार डुबोने से वस्त्र में एकगुण (अंश डिगरी) कालापन आया। इस वन को एक गुण काला कहेंगे । इसी प्रकार असंख्यात बार डुबोया तो वह असंख्यात गुण काला
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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