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________________ {३८३] नारक-वर्णन, करने की इच्छा होने में ही संख्यात समय बीत जाते हैं। इस नियम के अनुसार यद्यपि नारकी जीवों को कभी तृप्ति नहीं होती, फिर भी पकवार इच्छा करने बाद दूसरी बार इच्छा करने में ही असंख्य समय लग जाते हैं। नरक के जीव मवाद-मांस आदि पुद्गलों का आहार करते हैं । जब वे श्राहारं करते हैं तब भी उनकी भूख नहीं मिटती-उन्हें तृप्ति नहीं होती; किन्तु फिर खाने की इच्छा होने में असंख्यात समय लग जाते हैं। शास्त्रकारों ने नारकी जीवों की भूख मिट जाने की बात नहीं कही है। फिन्तु यह कहा है कि उन्हें असंख्यात समय में भोजन की इच्छा होती है। यह सिर्फ इस अभिप्राय से कहा है कि एक इच्छा के पश्चात् तत्काल ही दूसरी इच्छा होने में असंख्यात समय लग जाते हैं। - अब प्रश्न यह है कि अगर नारकी जीव आहार करते हैं तो किस वस्तु का याहार करते हैं। ___ यह पंचम द्वार फा प्रश्न है। इस प्रश्न का उत्तर भगचान् ने फरमाया है-हे गौतम ! नरक के जीच द्रव्य की अपेक्षा अनन्त प्रदेश चाले पुद्गलों का आहार करते हैं। पुद्गल का सबसे छोटा अविभाज्य अंश-जो खुला रहता है अर्थात् चिलकुल अलग होता है, परमाणु कहलाता है। और चही अंश जब जुड़ा रहता है तो प्रदेश कहलाता है । जो पुद्गल अनन्तप्रदेशी होकर भी सूक्ष्मंस्कंध रूप होता है वह आकाश के एक प्रदेश में समा सकता है। यहां ऐसे सूक्ष्मस्कंध से अभिप्राय नहीं है। किन्तु चादर अनन्त प्रदेशी स्कंध से तात्पर्य समझना चाहिए।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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